अमन अक्षर की प्रसिद्ध कविताएं | अमन अक्षर राम गीत कविता | भाग्य रेखाओं में कविता | Aman akshar ki kavita
दोस्तों कवि मंचों पर डॉ कुमार विश्वास और अन्य कवियों द्वारा किये गए प्रयासों ने कवि मंचों को विरासत में कई उम्मदा कवि दिए है उनमें से एक नाम इन दिनों जो बहुत ही चर्चे में है वे है कवि अमन अक्षर और Aman akshar ki kavita. वैसे तो इनका नाम अमन कुमार दलाल है लेकिन इन्हे अक्षर उपाधि दिया है मशहूर कवि डॉ कुमार विश्वास ने, कवि अमन अक्षर इन दिनों काफी चर्चे में है वो चर्चा का विषय है इनकी मधुर शैली और साधारण व्यक्तित्व अमन अक्षर जब मंचों से गाते है तो ऐसा लगता है मानो आपके ही दिल की बात कह रहे हो।वैसे तो इनकी सारी रचनाएँ एक पर एक है मगर अमन अक्षर राम गीत कविता और भाग्य रेखाओं में कविता इनकी बहुत ही मशहूर कविताओं में से एक है।
आइये दोस्तों पढ़ते है अमन अक्षर द्वारा लिखी अमन अक्षर की कविता
Aman akshar ki kavita |
हर पीड़ा पर भारी होगा -अमन अक्षऱ की कविता
हर पीड़ा पर भारी होगा सुख वो तुम्हारे होने का है !
तुमसे बंध जाने का और फिर बन्धन सारे खोने का !!
मरती आँखों को मिल जाए मौसम हसने रोने का !
तुमसे बंध जाने का और फिर बन्धन सारे खोने का !!
मिट्टी होती दुनिया अपनी राजमहल हो जाएगी !
प्रेमी हो या साधु हो ये दुविधा हल हो जाएगी
केवल गीतों में ही सुनकर दुनिया अपनी कायल है
तुमको मेरे संग जो देखेगी पागल हो जाएगी !!
इतना एकाकी जीवन बस दूर से सुन्दर लगता है !
प्यार से आपने रोना भी हसने से बेहतर लगता है
यक्छ सरीखी दुनिया में इस प्रश्न के जैसे जीवन का
तुम और मैं ही एक उत्तर है ऐसा अक्सर लगता है !!
प्यार अकेला ही नियम हो संबंधो के बोने का !
तुमसे बंद जाने का और फिर बंधन सारे खोने का !!
हर पीड़ा पर भारी होगा सुःख वह तुम्हारे होने का !
तुमसे बंध जाने का और फिर बंधन सारे खोने का !!
राम जानकी गीत / राम एक सत्य जिसका है प्रमाण जानकी - अमन अक्षऱ की कविता
जो है इस कथा के प्राण ' उनका प्राण जानकी !
राम एक सत्य जिसका है प्रमाण जानकी !!
पुण्य एक था मगर थे पुण्य के घड़े अलग !
युद्ध एक मगर दोनों ही लड़े अलग
जो न थे किसी के राम~राम थे खड़े अलग
जानकी के राम~राम से भी थे बड़े अलग !!
इस कथा से है बड़ा अलग विधान जानकी !
राम एक सत्य जिसका है प्रमाण जानकी !!
धर्म की कथा को जिसने मर्म एक नया दिया !
अपने साथ राम को भी राम में रमा दिया
जानकी ने इसको अर्थ धर्म से बड़ा किया
राम की कथा को ' प्रेम की कथा बना दिया !!
भावना से भी अधिक है अर्थवान जानकी !
राम एक सत्य जिसका है प्रमाण जानकी !!
इसमें क्या नया है लाख तर्क जो बुने गए !
तुम को लग रहा है सिर्फ राम ही सुने गए
एक सरल सी बात जिसके अर्थ अनसुने गए
जानकी ने हाँ कहा तो राम जी भी चुने गए !!
शब्द~शब्द अर्थ~अर्थ स्वाभिमान जानकी !
राम एक सत्य जिसका है प्रमाण जानकी !!
प्रीत का नया ही रूप गढ़ रही थी जानकी !
पीछे पीछे चल के आगे बढ़ रही थी जानकी
जैसे मंदिर की सीढ़ी चढ़ रही थी जानकी
राम लिख रहे थे राम पढ़ रही थी जानकी !!
राम जिसके हो गऐ सहज सुजान जानकी !
राम एक सत्य जिसका प्रमाण जानकी !!
जीवन तेरा जीवन मेरा - अमन अक्षऱ की कविता
जीवन तेरा जीवन मेरा !
इस का कौन चितेरा !!
संघर्षो की बेला हैं !
सुख और दुःख का खेला हैं
कभी हैं तुम्हारे
कभी एकाकी सा मेला हैं
क्षण~क्षण हर क्षण रोया ये मन
बनकर मीरा-कबीरा !!
जीवन तेरा जीवन मेरा !
इसका कौन चितेरा !!
निश्चल जल सा ये अविरल सा !
बहता जाये कल ~ कल
कभी झरनों से कभी नयनों से
झरता जाये पल ~ पल
प्राणों की अपनी ही व्यथा हैं
झर जाना जीवन की प्रथा हैं
कभी है अनुबंध बरस के
कोई क्षण भर ही ठहरा !!
जीवन तेरा जीवन मेरा !
इसका कौन चितेरा !!
भाग्य रेखाओं में तुम कही भी नहीं थे - अमन अक्षऱ की कविता
भाग्य रेखाओं में तुम कही भी नहीं थे !
प्राण के पार लेकिन तुम्ही दिखते !!
सांस के युद्ध में मन पराजित हुआ
याद की कोई राजधानी नहीं
प्रेम तो जन्म से ही प्रणयहीन है
बात लेकिन कभी हमने मानी नहीं
हर नए युग तुम्हारी प्रतीक्षा रही
हर घड़ी हम समय से अधिक बीते
भाग्य रेखाओं में तुम कही भी न थे
प्राण के पार मगर तुम्हीं दिखते
इक तरफ आस के कुछ दिये जल उठे
इक तरफ मन विदा गीत गाने को है
प्रिये इस जन्म भी कुछ पता न चला
प्यार आता है या सिर्फ जाने को है
जो सहज जी गए तुम हमारे बिना
हम वो जीवन तुम्हारे ही संग सीखते
भाग्य रेखाओं में तुम कही भी न थे
प्राण के पार मगर तुम्हीं दिखते
देह वनवास को सौप कर वो चला /हमको जीने का अभिनय नहीं आएगा- अमन अक्षऱ की कविता
देह वनवास को सौप कर वो चला
चित घर की दिशा शेष जाने किधर
एक पराजय यदि आयु भर साथ हो
हर घड़ी हर्ष ये ना निभा पाएगा
अपना जीवन अगर है मंचन के जैसा अगर
हमको जीने का अभिनय नहीं आएगा
जब स्वयं का ही अधिकार करना सके
प्राण सीमित हुए साँस विन्यास पर
देह वनवास को सौप कर वो चला
चित घर की दिशा शेष जाने किधर
कुछ वचन यु अधूरे सँजोए रहे
अश्रुपूरित समापन हो संसार का
एक इकाई है मन बस यही मान कर
हम भी सतिया बने दर्द के द्वार का
आस अंतिम यही स्वर अबोले रहे
गीत कोई कभी नहीं मुखर
देह वनवास को सौप कर वो चला
चित घर की दिशा शेष जाने किधर
मंत्रणा कोई भी ना सफल हो सकी
प्रीत को तो समर में उतरना ही था
हारना प्रेम में सब अमर कर गया
जीत जाता प्रणय फिर तो मरना ही था
हार को सांस हरदम संभाले हुए
पास रहता नहीं यूँ कोई जीत कर
देह वनवास को सौप कर वो चला
चित घर की दिशा शेष जाने किधर
अमन अक्षर की नई कविता,मुक्तक -अमन अक्षर की कविता
एक जैसे ही रंग में ढ़ले लोग है
वो जो सीधे से रस्ते चले लोग है
हम मोहब्बत में बिगड़े- बिगड़ते रहे
जो भले लोग थे वो भले लोग है
साथ हसने लगे तो हसीं कम लगी
रो पड़ी आँख तो फिर नमी कम लगी
जब तुम्हारी कमी ही को जीना पड़ा
जिंदगी में तुम्हारी कमी कम लगी
जिसको जाना था वो तो गया जिंदगी
दिल नए रंग में हो गया जिन्दगी
खुद को मंदिर करे ,एक दीपक धरे
आरती का समय हो गया जिन्दगी
जिंदगी का सहारा नहीं चाहते
मौत का भी इशारा नहीं चाहते
तुम जो आये गये सब भला था मगर
हम वो मौसम दुबारा नहीं चाहते
धन्यवाद !!
बहुत सुंदर ,कल आपको सामने बैठकर सुना
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