संसद पर कविता |Sansad Par Kavita |संसद पर लेख
संसद पर कविता |
चले देखने दूरदर्शन भैया के संग,
शुरू हुई संसद की जंग,
लोक सभा - राज्य सभा है इनके अंग,
मैं देख रह गई दंग,
क्या यही है भारत का रंग ?
देख संसद की जंग
मन में एक विचार आई
ये तो है ! मछली बाजार भाई,
सभी अनुशासन तोड़ रहे थे,
नव इतिहास जोड़ रहे थे,
एक तरफा सभागण बोल रहे थे,
जनता की धैर्य तौल रहे थे,
तभी सभापति पड़े बोल
सदन हुई अनिश्चित कालिन भंग
सुन बात समझ में आई
भारत का अंग क्यों है रोगग्रस्त भाई ।
अगर जलती रहे सदन में ऐसे ही आग
ये देश हमारी विशाल आबादी की
तय करेगी कैसे भाग्य ?
लेखिका - मुन्नी झा
धन्यवाद !!
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