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मंगलवार, 16 जून 2020

Shayar ahmad faraz | Ahmad faraz shayari 2 lines

Ahmad faraz ghazal | अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi | Ahmad faraz Shayari 2 lines 

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 इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi

Ahmad Faraz Shayari


इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ 
क्यूँ दोस्त हम जुदा हो जाएँ 

तू भी हीरे से बन गया पत्थर 
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ 

तू कि यकता था बे-शुमार हुआ 
हम भी टूटें तो जा--जा हो जाएँ 

हम भी मजबूरियों का उज़्र करें 
फिर कहीं और मुब्तिला हो जाएँ 

हम अगर मंज़िलें बन पाए 
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ 

देर से सोच में हैं परवाने 
राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ 

इश्क़ भी खेल है नसीबों का 
ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ 

अब के गर तू मिले तो हम तुझसे 
ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ 

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़' 
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ 


ज़िंदगी से यही गिला है मुझे अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे 
तू बहुत देर से मिला है मुझे 

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल 
हार जाने का हौसला है मुझे 

दिल धड़कता नहीं टपकता है 
कल जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे 

हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं 
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे 

कोहकन हो कि क़ैस हो कि 'फ़राज़' 
सब में इक शख़्स ही मिला है मुझे 

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जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi


जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
कि हम से दोस्त बहुत बे-ख़बर हमारे हुए

किसे ख़बर वो मोहब्बत थी या रक़ाबत थी
बहुत से लोग तुझे देख कर हमारे हुए

अब इक हुजूम--शिकस्ता-दिलाँ है साथ अपने
जिन्हें कोई मिला हम-सफ़र हमारे हुए

किसी ने ग़म तो किसी ने मिज़ाज--ग़म बख़्शा
सब अपनी अपनी जगह चारागर हमारे हुए

बुझा के ताक़ की शमएँ देख तारों को
इसी जुनूँ में तो बर्बाद घर हमारे हुए

वो 'तिमाद कहाँ से 'फ़राज़' लाएँगे
किसी को छोड़ के वो अब अगर हमारे हुए


उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi


उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ

ढलती थी किसी भी जतन से शब--फ़िराक़
मर्ग--ना-गहाँ तिरा आना बहुत हुआ

हम ख़ुल्द से निकल तो गए हैं पर ख़ुदा
इतने से वाक़िए का फ़साना बहुत हुआ

अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी
उस से ज़रा सा रब्त बढ़ाना बहुत हुआ

अब क्यूँ ज़िंदगी पे मोहब्बत को वार दें
इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ

अब तक तो दिल का दिल से तआरुफ़ हो सका
माना कि उस से मिलना मिलाना बहुत हुआ

क्या क्या हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल
याद--यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ

कहता था नासेहों से मिरे मुँह आइयो
फिर क्या था एक हू का बहाना बहुत हुआ

लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद 'फ़राज़' तुझ से कहा बहुत हुआ


आँख से दूर हो दिल से उतर जाएगा अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi


आँख से दूर हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

इतना मानूस हो ख़ल्वत--ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा

डूबते डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा

ज़िंदगी तेरी अता है तो ये जाने वाला
तेरी बख़्शिश तिरी दहलीज़ पे धर जाएगा

ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़'
ज़ालिम अब के भी रोएगा तो मर जाएगा


करूँ याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi


करूँ याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे

वो ख़ार ख़ार है शाख़--गुलाब की मानिंद
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे

ये लोग तज़्किरे करते हैं अपने लोगों के
मैं कैसे बात करूँ अब कहाँ से लाऊँ उसे

मगर वो ज़ूद-फ़रामोश ज़ूद-रंज भी है
कि रूठ जाए अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे

वही जो दौलत--दिल है वही जो राहत--जाँ
तुम्हारी बात पे नासेहो गँवाऊँ उसे

जो हम-सफ़र सर--मंज़िल बिछड़ रहा है 'फ़राज़'
अजब नहीं है अगर याद भी आऊँ उसे


Faraz Ahmad Shayari 2 lines


अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारन ये ज़हर पिया है अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi

अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारण ये ज़हर पिया है
हम ने उस के शहर को छोड़ा और आँखों को मूँद लिया है

अपना ये शेवा तो नहीं था अपने ग़म औरों को सौंपें
ख़ुद तो जागते या सोते हैं उस को क्यूँ बे-ख़्वाब किया है

ख़िल्क़त के आवाज़े भी थे बंद उस के दरवाज़े भी थे
फिर भी उस कूचे से गुज़रे फिर भी उस का नाम लिया है

हिज्र की रुत जाँ-लेवा थी पर ग़लत सभी अंदाज़े निकले
ताज़ा रिफ़ाक़त के मौसम तक मैं भी जिया हूँ वो भी जिया है

एक 'फ़राज़' तुम्हीं तन्हा हो जो अब तक दुख के रसिया हो
वर्ना अक्सर दिल वालों ने दर्द का रस्ता छोड़ दिया है


इश्क़ नशा है जादू जो उतर भी जाए अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi

इश्क़ नशा है जादू जो उतर भी जाए
ये तो इक सैल--बला है सो गुज़र भी जाए

तल्ख़ी--काम--दहन कब से अज़ाब--जाँ है
अब तो ये ज़हर रग पय में उतर भी जाए

अब के जिस दश्त--तमन्ना में क़दम रक्खा है
दिल तो क्या चीज़ है इम्काँ है कि सर भी जाए

हम बगूलों की तरह ख़ाक-बसर फिरते हैं
पाँव शल हों तो ये आशोब--सफ़र भी जाए

लुट चुके इश्क़ में इक बार तो फिर इश्क़ करो
किस को मालूम कि तक़दीर सँवर भी जाए

शहर--जानाँ से परे भी कई दुनियाएँ हैं
है कोई ऐसा मुसाफ़िर जो उधर भी जाए

इस क़दर क़ुर्ब के बाद ऐसे जुदा हो जाना
कोई कम-हौसला इंसाँ हो तो मर भी जाए

एक मुद्दत से मुक़द्दर है ग़रीब-उल-वतनी
कोई परदेस में ना-ख़ुश हो तो घर भी जाए


कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो 
बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो 

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है 
ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो 

नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं 
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो 

ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है 
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो 

अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के 
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो 

तवाफ़--मंज़िल--जानाँ हमें भी करना है 
'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो 


अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम 
 अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम

सहरा--ज़िंदगी में कोई दूसरा था
सुनते रहे हैं आप ही अपनी सदाएँ हम

इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना याद कि तुझे भूल जाएँ हम

तू इतनी दिल-ज़दा तो थी शब--फ़िराक़
तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम

वो लोग अब कहाँ हैं जो कहते थे कल 'फ़राज़'
है है ख़ुदा--कर्दा तुझे भी रुलाएँ हम



अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
'फ़राज़' अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं

जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान--सफ़र
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं

रह--वफ़ा में हरीफ़--ख़िराम कोई तो हो
सो अपने आप से आगे निकल के देखते हैं

तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता
ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं

ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफ़िल में
जो लालचों से तुझे मुझ को जल के देखते हैं

ये क़ुर्ब क्या है कि यक-जाँ हुए दूर रहे
हज़ार एक ही क़ालिब में ढल के देखते हैं

तुझ को मात हुई है मुझ को मात हुई
सो अब के दोनों ही चालें बदल के देखते हैं

ये कौन है सर--साहिल कि डूबने वाले
समुंदरों की तहों से उछल के देखते हैं

अभी तलक तो कुंदन हुए राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं

बहुत दिनों से नहीं है कुछ उस की ख़ैर ख़बर
चलो 'फ़राज़' कू--यार चल के देखते हैं


अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी 
इक ग़ज़ल है कि हो रही है अभी 

मैं भी शहर--वफ़ा में नौ-वारिद 
वो भी रुक रुक के चल रही है अभी 

मैं भी ऐसा कहाँ का ज़ूद-शनास 
वो भी लगता है सोचती है अभी 

दिल की वारफ़्तगी है अपनी जगह 
फिर भी कुछ एहतियात सी है अभी 

गरचे पहला सा इज्तिनाब नहीं 
फिर भी कम कम सुपुर्दगी है अभी 

कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता 
बूँदा-बाँदी भी धूप भी है अभी 

ख़ुद-कलामी में कब ये नश्शा था 
जिस तरह रू--रू कोई है अभी 

क़ुर्बतें लाख ख़ूब-सूरत हों 
दूरियों में भी दिलकशी है अभी 

फ़स्ल--गुल में बहार पहला गुलाब 
किस की ज़ुल्फ़ों में टाँकती है अभी 

मुद्दतें हो गईं 'फ़राज़' मगर 
वो जो दीवानगी कि थी है अभी 



आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो

जस्ता जस्ता पढ़ लिया करना मज़ामीन--वफ़ा
पर किताब--इश्क़ का हर बाब मत देखा करो

इस तमाशे में उलट जाती हैं अक्सर कश्तियाँ
डूबने वालों को ज़ेर--आब मत देखा करो

मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब
बज़्म--साक़ी में अदब आदाब मत देखा करो

हम से दरवेशों के घर आओ तो यारों की तरह
हर जगह ख़स ख़ाना बरफ़ाब मत देखा करो

माँगे-ताँगे की क़बाएँ देर तक रहती नहीं
यार लोगों के लक़ब-अलक़ाब मत देखा करो

तिश्नगी में लब भिगो लेना भी काफ़ी है 'फ़राज़'
जाम में सहबा है या ज़हराब मत देखा करो





 उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi

 
उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है
यूँ तो कहने को सभी कहते हैं यूँ है यूँ है

जैसे कोई दर--दिल पर हो सितादा कब से
एक साया दरूँ है बरूँ है यूँ है

तुम ने देखी ही नहीं दश्त--वफ़ा की तस्वीर
नोक--हर-ख़ार पे इक क़तरा--ख़ूँ है यूँ है

तुम मोहब्बत में कहाँ सूद ज़ियाँ ले आए
इश्क़ का नाम ख़िरद है जुनूँ है यूँ है

अब तुम आए हो मिरी जान तमाशा करने
अब तो दरिया में तलातुम सुकूँ है यूँ है

नासेहा तुझ को ख़बर क्या कि मोहब्बत क्या है
रोज़ जाता है समझाता है यूँ है यूँ है

शाइरी ताज़ा ज़मानों की है मेमार 'फ़राज़'
ये भी इक सिलसिला--कुन-फ़यकूँ है यूँ है



ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते 
जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते 

अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं 
मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते 

कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं 
कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते 

शाइस्तगी--ग़म के सबब आँखों के सहरा 
नमनाक तो हो जाते हैं जल-थल नहीं होते 

कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम--जाँ में 
कुछ याद जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते 

उश्शाक़ के मानिंद कई अहल--हवस भी 
पागल तो नज़र आते हैं पागल नहीं होते 

सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है 
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते 


ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi


Ahmad Faraz Shayari 2 lines 


ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे

अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हों जैसे

कितने नादाँ हैं तिरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे

तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर
ये गिरह अब के मिरे दिल में पड़ी हो जैसे

मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पाँव में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे

आज दिल खोल के रोए हैं तो यूँ ख़ुश हैं 'फ़राज़'
चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे





कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi


कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी
बिगड़ गया हूँ कि सूरत यही बनाव की थी

वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है
कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी

वो मुझ से प्यार करता तो और क्या करता
कि दुश्मनी में भी शिद्दत इसी लगाव की थी

मगर ये दर्द--तलब भी सराब ही निकला
वफ़ा की लहर भी जज़्बात के बहाव की थी

अकेले पार उतर कर ये नाख़ुदा ने कहा
मुसाफ़िरो यही क़िस्मत शिकस्ता नाव की थी

चराग़--जाँ को कहाँ तक बचा के हम रखते
हवा भी तेज़ थी मंज़िल भी चल-चलाव की थी

मैं ज़िंदगी से नबर्द-आज़मा रहा हूँ 'फ़राज़'
मैं जानता था यही राह इक बचाव की थी


क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा
जैसा भी तू था उस से तो बढ़ कर नहीं कहा

उस से मिले तो ज़ोम--तकल्लुम के बावजूद
जो सोच कर गए वही अक्सर नहीं कहा

इतनी मुरव्वतें तो कहाँ दुश्मनों में थीं
यारों ने जो कहा मिरे मुँह पर नहीं कहा

मुझ सा गुनाहगार सर--दार कह गया
वाइज़ ने जो सुख़न सर--मिंबर नहीं कहा

बरहम बस इस ख़ता पे अमीरान--शहर हैं
इन जौहड़ों को मैं ने समुंदर नहीं कहा

ये लोग मेरी फ़र्द--अमल देखते हैं क्यूँ
मैं ने 'फ़राज़' ख़ुद को पयम्बर नहीं कहा


क़ुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


क़ुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता
वो शख़्स कोई फ़ैसला कर भी नहीं जाता

आँखें हैं कि ख़ाली नहीं रहती हैं लहू से
और ज़ख़्म--जुदाई है कि भर भी नहीं जाता

वो राहत--जाँ है मगर इस दर-बदरी में
ऐसा है कि अब ध्यान उधर भी नहीं जाता

हम दोहरी अज़िय्यत के गिरफ़्तार मुसाफ़िर
पाँव भी हैं शल शौक़--सफ़र भी नहीं जाता

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता

पागल हुए जाते हो 'फ़राज़' उस से मिले क्या
इतनी सी ख़ुशी से कोई मर भी नहीं जाता


क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बे-मेहर कि रोने के बहाने माँगे

हम होते तो किसी और के चर्चे होते
ख़िल्क़त--शहर तो कहने को फ़साने माँगे

यही दिल था कि तरसता था मरासिम के लिए
अब यही तर्क--तअल्लुक़ के बहाने माँगे

अपना ये हाल कि जी हार चुके लुट भी चुके
और मोहब्बत वही अंदाज़ पुराने माँगे

ज़िंदगी हम तिरे दाग़ों से रहे शर्मिंदा
और तू है कि सदा आईना-ख़ाने माँगे

दिल किसी हाल पे क़ाने ही नहीं जान--'फ़राज़'
मिल गए तुम भी तो क्या और जाने माँगे


ख़ुद को तिरे मेआर से घट कर नहीं देखा अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


ख़ुद को तिरे मेआर से घट कर नहीं देखा
जो छोड़ गया उस को पलट कर नहीं देखा

मेरी तरह तू ने शब--हिज्राँ नहीं काटी
मेरी तरह इस तेग़ पे कट कर नहीं देखा

तू दश्ना--नफ़रत ही को लहराता रहा है
तू ने कभी दुश्मन से लिपट कर नहीं देखा

थे कूचा--जानाँ से परे भी कई मंज़र
दिल ने कभी इस राह से हट कर नहीं देखा

अब याद नहीं मुझ को 'फ़राज़' अपना भी पैकर
जिस रोज़ से बिखरा हूँ सिमट कर नहीं देखा

गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़--नज़र अच्छा लगा अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़--नज़र अच्छा लगा
मुद्दतों के बाद कोई हम-सफ़र अच्छा लगा

दिल का दुख जाना तो दिल का मसअला है पर हमें
उस का हँस देना हमारे हाल पर अच्छा लगा

हर तरह की बे-सर--सामानियों के बावजूद
आज वो आया तो मुझ को अपना घर अच्छा लगा

बाग़बाँ गुलचीं को चाहे जो कहे हम को तो फूल
शाख़ से बढ़ कर कफ़--दिलदार पर अच्छा लगा

कोई मक़्तल में पहुँचा कौन ज़ालिम था जिसे
तेग़--क़ातिल से ज़ियादा अपना सर अच्छा लगा

हम भी क़ाएल हैं वफ़ा में उस्तुवारी के मगर
कोई पूछे कौन किस को उम्र भर अच्छा लगा

अपनी अपनी चाहतें हैं लोग अब जो भी कहें
इक परी-पैकर को इक आशुफ़्ता-सर अच्छा लगा

'मीर' के मानिंद अक्सर ज़ीस्त करता था 'फ़राज़'
था तो वो दीवाना सा शाइर मगर अच्छा लगा


गुमाँ यही है कि दिल ख़ुद उधर को जाता है  अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


गुमाँ यही है कि दिल ख़ुद उधर को जाता है
सो शक का फ़ाएदा उस की नज़र को जाता है

हदें वफ़ा की भी आख़िर हवस से मिलती हैं
ये रास्ता भी इधर से उधर को जाता है

ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
सो जाए भी तो पहर दो पहर को जाता है

ये हाल है कि कई रास्ते हैं पेश--नज़र
मगर ख़याल तिरी रह-गुज़र को जाता है

तू 'अनवरी' है 'ग़ालिब' तो फिर ये क्यूँ है 'फ़राज़'
हर एक सैल--बला तेरे घर को जाता है


चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह अहमद फ़राज़ ग़ज़ल | Ahmad faraz ghazal in hindi


चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह
पलट के देखा तो बैठे हैं नक़्श--पा की तरह

मुझे वफ़ा की तलब है मगर हर इक से नहीं
कोई मिले मगर उस यार--बेवफ़ा की तरह

मिरे वजूद का सहरा है मुंतज़िर कब से
कभी तो जरस--ग़ुंचा की सदा की तरह

वो अजनबी था तो क्यूँ मुझ से फेर कर आँखें
गुज़र गया किसी देरीना आश्ना की तरह

कशाँ कशाँ लिए जाती है जानिब--मंज़िल
नफ़स की डोर भी ज़ंजीर--बे-सदा की तरह

'फ़राज़' किस के सितम का गिला करें किस से
कि बे-नियाज़ हुई ख़ल्क़ भी ख़ुदा की तरह



जब तेरी  याद के जुगनू चमके अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


जब तेरी याद के जुगनू चमके 
देर तक आँख में आँसू चमके 

सख़्त तारीक है दिल की दुनिया 
ऐसे आलम में अगर तू चमके 

हम ने देखा सर--बाज़ार--वफ़ा 
कभी मोती कभी आँसू चमके 

शर्त है शिद्दत--एहसास--जमाल 
रंग, तो रंग है ख़ुशबू चमके 

आँख मजबूर--तमाशा है 'फ़राज़' 
एक सूरत है कि हर सू चमके 


जब भी दिल खोल के रोए होंगे अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


जब भी दिल खोल के रोए होंगे 
लोग आराम से सोए होंगे 

बाज़ औक़ात -मजबूरी--दिल 
हम तो क्या आप भी रोए होंगे 

सुब्ह तक दस्त--सबा ने क्या क्या 
फूल काँटों में पिरोए होंगे 

वो सफ़ीने जिन्हें तूफ़ाँ मिले 
ना-ख़ुदाओं ने डुबोए होंगे 

रात भर हँसते हुए तारों ने 
उन के आरिज़ भी भिगोए होंगे 

क्या अजब है वो मिले भी हों 'फ़राज़' 
हम किसी ध्यान में खोए होंगे 



जान से इश्क़ और जहाँ से गुरेज़ अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


जान से इश्क़ और जहाँ से गुरेज़ 
दोस्तों ने किया कहाँ से गुरेज़ 

इब्तिदा की तेरे क़सीदे से 
अब ये मुश्किल करूँ कहाँ से गुरेज़ 

मैं वहाँ हूँ जहाँ जहाँ तुम हो 
तुम करोगे कहाँ कहाँ से गुरेज़ 

कर गया मेरे तेरे क़िस्से में 
दास्ताँ-गो यहाँ वहाँ से गुरेज़ 

जंग हारी थी अभी कि 'फ़राज़' 
कर गए दोस्त दरमियाँ से गुरेज़ 


जब हर एक शहर बलाओं का ठिकाना बन जाए अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


जब हर एक शहर बलाओं का ठिकाना बन जाए
क्या ख़बर कौन कहाँ किस का निशाना बन जाए

इश्क़ ख़ुद अपने रक़ीबों को बहम करता है
हम जिसे प्यार करें जान--ज़माना बन जाए

इतनी शिद्दत से मिल तू कि जुदाई चाहें
यही क़ुर्बत तिरी दूरी का बहाना बन जाए

जो ग़ज़ल आज तिरे हिज्र में लिक्खी है वो कल
क्या ख़बर अहल--मोहब्बत का तराना बन जाए

करता रहता हूँ फ़राहम मैं ज़र--ज़ख्म कि यूँ
शायद आइंदा ज़मानों का ख़ज़ाना बन जाए

इस से बढ़ कर कोई इनआम--हुनर क्या है 'फ़राज़'
अपने ही अहद में एक शख़्स फ़साना बन जाए

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi


जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
जान--जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो

ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है
ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो

इस दीद की साअत में कई रंग हैं लर्ज़ां
मैं हूँ कि कोई और है दुनिया है कि तुम हो

देखो ये किसी और की आँखें हैं कि मेरी
देखूँ ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो

ये उम्र--गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ
हर साँस में मुझ को यही लगता है कि तुम हो

हर बज़्म में मौज़ू--सुख़न दिल-ज़दगाँ का
अब कौन है शीरीं है कि लैला है कि तुम हो

इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूँ
इक मौज में आया हुआ दरिया है कि तुम हो

वो वक़्त आए कि दिल--ज़ार भी सोचे
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है कि तुम हो

आबाद हम आशुफ़्ता-सरों से नहीं मक़्तल
ये रस्म अभी शहर में ज़िंदा है कि तुम हो

जान--'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी
हम को ग़म--हस्ती भी गवारा है कि तुम हो



जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी अहमद फ़राज़ ग़ज़ल |
Ahmad faraz ghazal in hindi

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर इक दिल से लगी थी

तन्हाई में रोते हैं कि यूँ दिल को सुकूँ हो
ये चोट किसी साहब--महफ़िल से लगी थी

दिल तिरे आशोब ने फिर हश्र जगाया
बेदर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी

ख़िल्क़त का अजब हाल था उस कू--सितम में
साए की तरह दामन--क़ातिल से लगी थी

उतरा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरिया
जब कश्ती--जाँ मौत के साहिल से लगी थी





धन्यवाद !!



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