डॉ कुमार विश्वास शायरी - Dr. kumar Vishwas Shayari | Best Ever Kumar Vishwas Shayari | Kumar Vishwas Ki Shayari
कुमार विश्वास कवि मंचों के एक ऐसे कवि जिन्हे लोग हिंदी उर्दू साहित्य में दीवाना भी समझते है और पागल(यहाँ पागल इनके जूनून के संदर्भ में कहा गया है ) भी, हिंदी साहित्य की दिशा बदलने में इनकी अहम भूमिका है। इनकी पहचान कवि ,शायर ,उम्दा मंच संचालक ,मोटिवेशनल स्पीकर और राजनेता के तौर पर होती है। दोस्तों इनकी ये मुक्तक
"कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है "
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है "
देश दुनिया में इतनी प्रचलित है की लोग उनसे पहले इसे पूरा गुनगुना लेते है। दोस्तों कहते है शायर जिन्दा रहे न रहे उनके शब्द हज़ारो वर्ष जीवित रहते है आइये पढ़ते है इनके लिखे बेहतरीन शायरी और कविताओं को !
नजर में शोखियाँ लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की ज़द में अभी सारा जमाना है
कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझको
सिकंदर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ आना है ।
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कुछ जख्मों का मरहम है-----
ना पाने की ख़ुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है
ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ जख्मो का मरहम है
अजब सी कशमकश है, रोज जीने, रोज मरने में
मुकम्मल जिंदगी तो है मगर पूरी से कुछ कम है।
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मेरी हस्ती अधूरी है-------
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे जरूरी है समझता हूँ।
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मुहब्बत क्यों नहीं करता-------
तुम्ही पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता,
कई जन्मों से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है जमाने से,
मेरी तारीफ करता है मुहब्बत क्यों नहीं करता।
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ये बस जुगनू समझता है-------
पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है,
अंधेरा किसको कहते है ये बस जुगनू समझता है,
हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है,
मुहब्बत में नुमाइश को अदाएं तु समझता है ।
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अधिकार क्या करना------
पनाहों में जो आया हो तो उसपर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार क्या करना......
मुहब्बत का मजा तो डूबने की कश्मकश में है
हो अगर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या
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मेरी आँखो में पानी है-------
मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है, मेरी आँख में पानी है
जो तुम समझो तो मोती है, जो ना समझो तो पानी है।
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मुस्कुराना तो पड़ता है-------
महफ़िल महफ़िल मुस्कुराना तो पड़ता है,
खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है
उनकी आँखो से होकर दिल जाना,
रास्ते में ये मैखाना तो पड़ता है ।
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अभी तक गा रहा हूँ मै-------
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था अभी तक गा रहा हूँ मैं
फिराके यार में कैसे जिया जाये बिना तड़पे
जो मै खुद ही नहीं समझा वहीं समझा रहा हूँ मैं।
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जहर पीना नहीं आया-------
मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर जहर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दास्ता में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया ।
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मैं तेरा ख्वाब जी लूँ-------
मैं तेरा ख्वाब जी लूँ पर लाचारी है,
मेरा गुरुर मेरी ख्वाहिशों पर भारी है,
सुबह के सुर्ख उजालों से तेरी मांग से,
मेरे सामने तो ये श्याह रात सारी है ।
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हर बार रो के निकला हूँ------
मिल गया था जो मुकद्दर वो खो के निकला हूँ,
मैं एक लम्हा हूँ हर बार रो के निकला हूँ
राह-ए- दुनिया में मुझे कोई भी दुश्वारी नहीं,
में तेरी जुल्फ के पेंचो से हो के निकला हूँ ।
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उसका नाम मोहब्बत है-------
जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है,
जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है,
कतरा कतरा सागर तक तो, जाती है हर उमर मगर ,
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है।
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तुमको भी प्यारा है------
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है ।
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मैं भी हूँ और तु भी है-------
खुशहाली में एक बदहाली, मैं भी हूँ और तु भी है
हर निगाह पर एक सवाली, मैं भी हूँ और तु भी है
दुनिया कितना अर्थ लगाए, हम दोनो को मालूम है
भरे-भरे पर खाली खाली, मैं भी हूँ और तु भी है
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अनजान बना बैठा हूँ------
जिस्म का आखिरी मेहमान बना बैठा हूँ
एक उम्मीद का उन्वान बना बैठा हूँ
वो कहाँ है ये हवाओं को भी मालूम है मगर
एक बस में हूँ जो अंजान बना बैठा हूँ।
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उदास मत होना-------
खुद से भी न मिल सको इतने पास मत होना
इश्क़ तो करना मगर देवदास मत होना
देना, चाहना, मांगना या खो देना
ये सारे खेल है इनमें उदास मत होना।
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ख़ुशी पाने से डरता है-------
तुम्हारा ख्वाब जैसे गम को अपनाने से डरता है
हमारी आँख का आँसू, ख़ुशी पाने से डरता है
अजब है लज्जते ग़म भी, जो मेरा दिल अभी कल तक
तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है ।
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तुम याद रहते हो-------
ये दिल बर्बाद करके, इसमे क्यों आबाद रहते हो,
कोई कल कह रहा था तुम इलाहाबाद रहते हो,
ये कैसे शोहरतें मुझे अदा कर दी मेरे मौला
मैं सब कुछ भूल जाता हूँ मगर तुम याद रहते हो ।
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रुसवा हर बार करता है-------
मैं उसका हूँ वो एहसास से इनकार करता है
भरी महफ़िल मे भी, रुसवा हर बार करता है
यकीं है सारी दुनिया को, खफा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है।
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तुम्हारा नाम आएगा-------
मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा,
मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इल्जाम आएगा
हर एक धड़कन में जब तुम हो, तो फिर अपराध क्या मेरा
अगर राधा पुकारेगी, तो घनश्याम आएगा।
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जमाना साथ गाता है--------
यह चादर सुख की मोल क्यूँ, सदा छोटी बनाता है
सिरा कोई भी थामो, दूसरा खुद छुट जाता है
तुम्हारे साथ था तो मैं, जमाने भर में रुसवा था
मगर अब तुम नही हो तो, जमाना साथ गाता है।
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भ्रमर कोई कुमुदनी पर--------
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्सा को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा ।
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आँसू मेरी कहानी में-------
फलक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है,
ये दिल उगा है या सूरज के घर सगाई है,
अभी भी आते हैं आँसू मेरी कहानी में,
कलम में शुक्र-ए-खुदा है की 'रोशनाई' है ।
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बहुत टूटा बहुत बिखरा------
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नहीं पाया कभी मैं कह नहीं पाया।
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एक मेरा दीवानापन-------
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज गजब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन ।
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मेरा जात जरा कम आंकी-------
बात ऊँची थी मगर बात जरा कम आंकी
उसने जज्बात की औकात जरा कम आंकी
वो फरिश्ता कह कर मुझे जलील करता रहा
मैं इंसान हूँ, मेरी जात जरा कम आंकी।
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हर पल बहारों ने सताया है-----
बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है,
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है
सदा ही शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन,
मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है।
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बस दर्द का आलम है------
ये वो ही इरादें है, ये वो ही तबस्सुम है
हर एक मोहल्लत में, बस दर्द का आलम है
इतनी उदासी बातें, इतना उदास लहजा,
लगता है की तुम को भी, हम सा ही कोई गम है।
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ये जमाना कम नहीं होता--------
सदा तो धूप के हाथों मे ही परचम नहीं होता
ख़ुशी के घर में भी बोलो कभी क्या गम नहीं होता
फकत इक आदमी के वास्ते जग छोड़ने वालो
फकत उस आदमी से ये जमाना कम नहीं होता।
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हम में तो सिर्फ हम निकलते है--------
वो जो खुद में से कम निकलते हैं
उनके जहनों में बम निकलते हैं
आप में कौन-कौन रहता है ?
हम में तो सिर्फ हम निकलते है।
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अपना ही रिश्तेदार होता है-------
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहाँ खत भी थोड़ी देर में अखबार होता है।
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मेरे मन के गाँव में-कुमार विश्वास की कविता -------
जब भी मुहँ ढक लेता हूँ
तेरे जुल्फों के छाँव में
कितने गीत उतर आते है
मेरे मन के गाँव में
एक गीत पलकों पर लिखना
एक गीत होठों पर लिखना
यानि सारी गीत ह्रदय की
मीठी-सी चोटों पर लिखना
जैसे चुभ जाता है कोई काँटा नँगे पाँव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में पलके बंद हुई तो जैसे
धरती के उन्माद सो गये
पलकें अगर उठी तो जैसे
बिन बोले संवाद हो गये
जैसे धूप, चुनरिया ओढ़, आ बैठी हो छाँव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में ।
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बाँसुरी चली आओ-कुमार विश्वास की कविता ---------
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोड़ेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द- शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओ से
भूख की दलीलों से वक़्त की सजाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
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कोई दीवाना कहता है- कुमार विश्वास की कविता -------
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है!
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है ! !
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है!
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है!
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है!!
यहाँ सब लोग कहते है, मेरी आँखो में आँसू है!
जो तु समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है!!
समन्दर पीर का अंदर है, लेकिन रो नहीं सकता!
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता!!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता!!
भ्रमर कोई कुमुदुमी पर मचल बैठा तो हंगामा !
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!
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मैं तुम्हे अधिकार दूँगा- कुमार विश्वास की कविता ---------
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
एक अनुसंघे सुमन की गंध सा
मैं अपरिमित प्यार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का
कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
ईश को देती चुनौती,
वारती शत-स्वर्ण मोती
अर्चना की शुभ ज्योति
मैं तुम्ही पर वार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
तुम की ज्योति भागीरथी जल
सार जीवन का कोई पल
क्षीर सागर का कमल दल
क्या अनघ उपहार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
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जाने कौन डगर ठहरेंगे- कुमार विश्वास की कविता -------
कुछ छोटे सपनो के बदले,
बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पडे है पाँव अभागे, जाने कौन डगर ठहेरेंगे!
वही प्यास अनपढ़ मोती,
वही धूप की सुर्ख कहानी,
वही आँख में घुटकर मरती,
आँसू की खुद्दार जवानी,
हर मोहरे की मूक विवशता, चौसर के खाने क्या जाने हार जीत तय करती है वे, आज कौन से घर ठहरेंगे
निकल पडे है पाँव अभागे, जाने कौन से डगर ठहरेंग!
कुछ पलकों में बंद चांदनी,
कुछ होठों मे कैद तराने,
मंजिल के गुमनाम भरोसे
सपनो के लाचार बहाने,
जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे,
उन के भी दुर्दम्य इरादे, वीणा के स्वर पर ठहरेंगे
निकल पडे है पाँव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे!
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पगली लड़की- कुमार विश्वास की कविता -------
मावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की काली रातों में गम आँसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं,हम रोते हैं
जब बार-बार दोहराने से यादें चूक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है ।
जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गजलें रास नहीं आती, अफसाने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
मावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की काली रातों में गम आँसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं,हम रोते हैं
जब बार-बार दोहराने से यादें चूक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है ।
जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गजलें रास नहीं आती, अफसाने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है
तब एक पगली लड़की के बिना जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज सुनाई देती है,
जब दर्पण में आँखो के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं,कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनो का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है, हम जाते में घबराते हैं,
जब साड़ी पहन एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है
तब एक पगली लड़की के बिना जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज सुनाई देती है,
जब दर्पण में आँखो के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं,कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनो का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है, हम जाते में घबराते हैं,
जब साड़ी पहन एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है ।
दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल मे भैया तेरे जैसे प्यारे जज्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस लड़की के संग जीना फुलवार लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है ।
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पिता की याद- कुमार विश्वास की कविता -------
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
फिर पिता की याद आई है मुझे
नीम सी यादें हृदय में चुप समेटे
चारपाई डाल आँगन बिच लेटे
सोचते हैं हित सदा उनके घरों का
दूर है जो एक बेटी चार बेटे
फिर कोई रख हाँथ काँधे पर
कहीं यह पूछता है-
"क्यूँ अकेला हूँ भरी इस भीड मे"
मैं रो पडा हूँ
फिर पिता की याद आई है मुझे
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
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सब तमन्नाएँ हो पूरी- कुमार विश्वास की कविता ------
सब तमन्नाएँ हो पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे
चाहता वो है, मुहब्बत में नुमाइश भी रहे
आसमाँ चूमे मेरे पंख तेरी रहमत से भी रहे
और किसी पेड की डाली पर रिहाइश
उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद
उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश भी रहे
मुझको मालूम है मेरा है वो मैं उसका हूँ
उसकी चाहत है की रस्मों की ये बंदिश भी रहे
मौसमों में रहे 'विश्वास' के कुछ ऐसे रिश्ते
कुछ अदावत भी रहे थोडी नवाजिश भी रहे।
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मुझे तु याद न आया कर- कुमार विश्वास की कविता ------
ओ प्रीत भरे संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तु याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस -नस के पहले ज्वार!
मुझे तु याद न आया कर।
पावस की प्रथम फुहारों से
जिससे मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसू मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मै अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार
मुझे तू याद न आया कर।
मुझे पता चला मधुरे तू भी
पागल बन रोती है,
जो पीड़ा मेरे अंतर में तेरे
दिल में भी होती है
लेकिन इन बातों से किंचित
भी अपना धैर्य नहीं खोना
मेरे मन की सीपी में अब तक
तेरे मन का मोती है,
ओ सहज सरल पलकों वाले!
ओ कुंचित घन अलकों वाले!
हँसते गाते स्वीकार
मुझे तु याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार
मुझे तु याद न आया कर।
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है नमन उनको-कुमार विश्वास की कविता -------
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
है नमन उस दोहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय. . . . .
हमने भेजे हैं सिकंदर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिड़ते है वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुर्जुगों से कभी भी
सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कौतुक जिनके आगे पानी हो गये है
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे़ पर आसमानी हो गये है
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों का प्रतिछा, सिंदूरदानों की व्यथाओं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सुख कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको कि उनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं
कंचनी तन, चंदनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये।
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और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है ।
दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल मे भैया तेरे जैसे प्यारे जज्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस लड़की के संग जीना फुलवार लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है ।
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पिता की याद- कुमार विश्वास की कविता -------
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
फिर पिता की याद आई है मुझे
नीम सी यादें हृदय में चुप समेटे
चारपाई डाल आँगन बिच लेटे
सोचते हैं हित सदा उनके घरों का
दूर है जो एक बेटी चार बेटे
फिर कोई रख हाँथ काँधे पर
कहीं यह पूछता है-
"क्यूँ अकेला हूँ भरी इस भीड मे"
मैं रो पडा हूँ
फिर पिता की याद आई है मुझे
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
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सब तमन्नाएँ हो पूरी- कुमार विश्वास की कविता ------
सब तमन्नाएँ हो पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे
चाहता वो है, मुहब्बत में नुमाइश भी रहे
आसमाँ चूमे मेरे पंख तेरी रहमत से भी रहे
और किसी पेड की डाली पर रिहाइश
उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद
उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश भी रहे
मुझको मालूम है मेरा है वो मैं उसका हूँ
उसकी चाहत है की रस्मों की ये बंदिश भी रहे
मौसमों में रहे 'विश्वास' के कुछ ऐसे रिश्ते
कुछ अदावत भी रहे थोडी नवाजिश भी रहे।
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मुझे तु याद न आया कर- कुमार विश्वास की कविता ------
ओ प्रीत भरे संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तु याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस -नस के पहले ज्वार!
मुझे तु याद न आया कर।
पावस की प्रथम फुहारों से
जिससे मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसू मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मै अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार
मुझे तू याद न आया कर।
मुझे पता चला मधुरे तू भी
पागल बन रोती है,
जो पीड़ा मेरे अंतर में तेरे
दिल में भी होती है
लेकिन इन बातों से किंचित
भी अपना धैर्य नहीं खोना
मेरे मन की सीपी में अब तक
तेरे मन का मोती है,
ओ सहज सरल पलकों वाले!
ओ कुंचित घन अलकों वाले!
हँसते गाते स्वीकार
मुझे तु याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार
मुझे तु याद न आया कर।
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है नमन उनको-कुमार विश्वास की कविता -------
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
है नमन उस दोहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय. . . . .
हमने भेजे हैं सिकंदर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिड़ते है वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुर्जुगों से कभी भी
सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कौतुक जिनके आगे पानी हो गये है
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे़ पर आसमानी हो गये है
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों का प्रतिछा, सिंदूरदानों की व्यथाओं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सुख कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको कि उनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं
कंचनी तन, चंदनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये।
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होंठो पर गंगा हो - तिरंगा, कुमार विश्वास की कविता
शोहरत ना अता करना मौला,दौलत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे जन्नत ना अता करना मौला
सम्मय वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
बस एक सदा ही सुने सदा बर्फीली मस्त हवाओं में
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते तपते सेहराओं में
जीतेजी इसका मान रखे ,मर कर मर्यादा याद रहे
हम रहे कभी न रहे मगर इसकी सज धज आबाद रहे
गोधरा ना हो गुजरात ना हो ,इंसान ना नंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
गीता का ज्ञान सुने ना सुने इस धरती का यश गान सुने
हम सबद कीर्तन सुन ना सके भारत माँ का यश जान सुने
परवरदीगार मै तेरे द्वार पर ले पुकार ये कहता हु
चाहे आजान ना सुने कान पर जय जय हिंदुस्तान सुने
जन मन में जन मन में इस मन में उस मन में
जन मन में उछल देश प्रेम का जलधि तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
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खुद को आसान कर रही हो ना-कुमार विश्वास की कविता -------
खुद को आसान कर रही हो ना
हम पे अहसान कर रही हो ना
जिंदगी हसरतों की मय्यत है
फिर भी अरमान कर रही हो ना
नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें
कितना नुकसान कर रही हो ना
हम ने समझा है प्यार, पर तुम तो
जान-पहचान कर रही हो ना
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खुद को आसान कर रही हो ना
हम पे अहसान कर रही हो ना
जिंदगी हसरतों की मय्यत है
फिर भी अरमान कर रही हो ना
नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें
कितना नुकसान कर रही हो ना
हम ने समझा है प्यार, पर तुम तो
जान-पहचान कर रही हो ना
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धन्यवाद !!
Thanks
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