गुलज़ार साहब की फेमस शायरी- कविताएं,मशहूर कोट्स ,स्टेटस | गुलज़ार साहब की शायरी इन हिंदी | मशहूर गुलज़ार साहब
❣❣❣❣▪▪▪▪गुलजार साहब की शायरी▪▪▪▪❣❣❣❣
कैसे करें हम खुद को तेरे प्यार के काबिल
जब हम आदतें बदलते है, तुम शर्ते बदल देते हो ।
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जिंदगी से खफा नहीं होता
गर मैं उसको मिला नहीं होता
जिंदगी अच्छी कट रही होती
वो अगर बेवफा नहीं होता ।
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सोचा ही नहीं था
जिंदगी में ऐसे भी फसाने होंगे,
रोना भी जरूरी होगा
और आँसू भी छुपाने होंगे।
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होंगी तुम्हारे पास जमाने भर की डिग्रियां
छलकती आंखो को न पढ़ पाये तो अनपढ़ हो तुम।
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यहां खुद से मिले जमाना हो गया
और लोग कहते हैं कि हमें भुल गए हो तुम ।
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कितना नादान है ये दिल
कैसे समझाऊं इसे कि
जिसे तू खोना नहीं चाहता
वो तेरा होना नहीं चाहता।
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तुम जानते नहीं कि अपने पुराने दोस्तों के साथ बैठ के
वही पुराने किस्से दोहराने में कितनी ख़ुशी मिलती है।
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कुछ लोग बिना रिश्ते के रिश्ते निभाते हैं
जिंदगी में शायद वो लोग ही दोस्त कहलाते हैं ।
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आजाद कर देंगे तुम्हें हम
अपनी चाहत की कैद से,
मगर वो शख्स लाओ जो
हमसे ज्यादा कदर करें तुम्हारी।
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आज खुदा ने मुझसे कहा
भुला क्यों नहीं देते उसे,
मैंने कहा इतनी फिक्र है
तो मिला क्यों नहीं देते।
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तुझे पा न सके तो भी
सारी जिंदगी तुझे प्यार करेंगे,
ये जरूरी तो नहीं
जो मिल न सके
उसे छोड़ दिया जाए।
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मेरी कदर तुझे उस दिन समझ आएगी,
जिस दिन तेरे पास दिल तो होगा
मगर दिल से चाहने वाला कोई नहीं होगा।
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दिल चाहता है......
हाल तो पूछ लूं तेरा,
पर डरता हूँ आवाज से तेरी,
जब जब सुनी है कमबख्त
दिल काबू में नहीं रहता।
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रब से कभी भी खूबसूरती मत मांगो.....
मांगो तो किस्मत माँगना,
मैंने खूबसूरत लोगों को
किस्मत के लिए रोते देखा है.....!!
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तकदीर को अपनी कुछ इस तरह अपनाया है मैंने,
जो नहीं था तकदीर में उसे भी बेपनाह चाह है मैंने ।
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बात इतनी सी थी कि तुम्हें अच्छे लगते थे,
अब बात इतनी बढ़ गई है कि,
तुम बिन कुछ अच्छा नहीं लगता.....!!
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कुछ तो सोचा होगा कायनात ने तेरे मेरे रिश्ते पर ,
वरना इतनी बड़ी दुनिया में तुमसे ही बात क्यों होती।
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मेरी खामोशी से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता,
शिकायत के दो अल्फाज कहूँ तो चुभ जाते है......
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कल रात उदासी का आलम ये हुआ यारो.....
हर दर्द मेरा मैंने कागज पे लिखा यारो......
फिर नींद के आलम में सोता मैं रहा यारो......
तकलीफ में था कागज रोता ही रहा यारो......
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जिन्हें मुझसे मोहब्बत है
वो सब मुझ पर गुमान करो
मैं चुभता जिनकी आँखो में
वो अपनी आँखे दान करो
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कई बार जरूरत से ज्यादा खर्च कर देता हूं
वो क्या है ना साहब......
मैं अपने गरीब बाप का अमीर बेटा हूँ।
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चली जो बात मेरी जान की है
घड़ी आयी ये इम्तेहान की है
अधूरा चाँद ये जो दिख रहा है
समझ लो बाली उसके कान की है।
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शहर के शहर बन्द है
हर गली नाकाबंदी है
तुम पता नहीं किन रास्तो से
चले आते हो ख्यालों में।
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सुनो, तुम्ही रख लो मुझे अपना बनाकर,
औरों ने तो छोड़ दिया तुम्हारा समझकर।
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कदर कर, जता मत
फिक्र कर, दिखा मत
तू चाहता है कि दोस्ती रहे
तो मोहब्बत कर, बता मत
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देखा करो कभी कभी अपनी मां के आँखो में,
ये वो आइना है......
जिसमें बच्चे कभी बूढ़े नहीं होते ।
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तू ना रहे तो टुटा लगे सब कुछ
तू जो रूठा रहे तो रूठा लगे सब कुछ
तेरे बिना ये जिंदगी लगे जैसे शमशान
तू जो ना रहे तो झूठा लगे सब कुछ ।
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दुनिया की पहचान है औरत
दुनिया पर एहसान है औरत
हर घर की जान है औरत
बेटी मां बहन भाभी बनकर
घर घर की शान है औरत।
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खामोशियों बोल देती हैं
जिनकी बातें नहीं होती
इश्क वो भी करते हैं
जिनकी मुलाकातें नहीं होती।
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वो कहते है कि सोच लेना था
मोहब्बत करने से पहले,
अब हम उन्हें क्या बताए कि
सोच कर साजिश की जाती है,
मोहब्बत नहीं।
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किसी ने मुझसे पूछा- इतना दर्द क्यों लिखते हो ऐसा भी क्या गिला? ....
मैंने भी मुस्कुराकर कह दिया- कोई दे जाए इस चेहरे को हंसी ऐसा भी तो कोई नहीं मिला ।
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यूँ न कर बरबाद मुझे
बाज आजा मेरा दिल दुखाने से,
मैं तो फिर भी इंसान हूँ
पत्थर भी टूट जाता है
इतना आजमाने से।
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निकाल देते है औरों मे एब,
जैसे खुद नेकियों के नवाब है ।
अपने गुनाहों पर डाल कर पर्दा,
कहते है.... जमाना खराब है।
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मोहब्बत खुद बताती है
कहां किसका ठिकाना है,
किसे आंखो में रखना है
किसे दिल में बसाना है ।
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माँ की जिद पर साड़ी आई......
दीदी की जिद पर घड़ी,
मेरी जिद पर पटाखे आए,
पता नहीं फिर क्यों पापा ही
पुराने कमीज में नजर आए।
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कुछ इस तरह मैंने जिंदगी को आसान कर लिया,
किसी से माफी मांग ली, किसी को माफ कर दिया।
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किसी ने मुझसे पूछा चाय या मोहब्बत ?
हमने मुस्कुरा कर कहा, मोहब्बत के हाथों की चाय।
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तेरे मुस्कुराने का असर सेहत पर होता है,
लोग पूछ लेते है दवा का नाम क्या है।
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मत सोना किसी के गोद में सर रखकर कभी......
जब वो छोड़ता है तो रेशम के तकिये पर भी नींद नही आती ।
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चंद फैसला जरूर रखिए
हर रिश्ते के दरमियान
क्योंकि नहीं भूलती दो चीजें
चाहे जितना भुलाओ
एक " घाव " और दूसरा लगाव।
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पहली मोहब्बत मुकदमें की तरह होती है
ना खत्म होती है......
और ना इंसान को बाइज़्जत बरी करती है।
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फक्र है.....
दोस्ती और मोहब्बत में
बरसो बाद मिलने पर
मोहब्बत नजरे चुरा लेती है
और दोस्ती गले लगा लेती है।
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मेरे शब्दों को इतना गौर से मत पढ़ा कीजिए जनाब,
थोड़ा बहुत भी याद रह जाएगा......
तो मुझे भूला नहीं पाओगे ।
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मोहब्बत तब ही करो जब उसे निभा सको,
बाद में मजबूरियों का सहारा लेकर.....
किसी को छोड़ देना वफादारी नहीं होती ।
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छीन लू तुझे दुनिया से ये मेरे बस में नहीं
मगर मेरे दिल से तुझे कोई निकाल दे ये भी
किसी के बस की बात नहीं।
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तुझे कोई और भी चाहे ,
इस बात से दिल थोड़ा जलता है,
पर फखर है मुझे इस बात पे कि
हर कोई मेरी पसंद पे ही मरता है ।
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छोड़ दो ये बहाने जो तुम करते हो,
हमें भी अच्छे से मालूम है
मजबूरियां तभी आती है
जब दिल भर गया हो ।
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बाजार से सब कुछ मिल जाता है
लेकिन " माँ जैसी जन्नत"
और " बाप जैसा साया "
कभी नहीं मिलता।
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टाइमपास कर के किसी से पीछे छुड़ाना आसान है,
लेकिन सच्चा प्यार कर के किसी से दूर होना मुश्किल।
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जिस जिसने मोहब्बत में
अपने मोहब्बत को खुदा कर दिया,
खुदा ने अपना वजूद बचाने के लिए
उनको जुदा कर दिया ।
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वो किसी और की खातिर हमें
भूल भी गए तो कोई बात नहीं,
हम भी तो भूल गए थे......
सारा जहां उनके खातिर।
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इंसान बहुत खुदगर्ज है,
पसंद करें है तो बुराई नहीं देखता,
नफरत करें है तो अच्छाई नहीं देखता।
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ये नामुमकिन है
कोई मिल जाए तुम जैसा,
पर इतना आसान ये भी नहीं
कि तुम ढूंढ सको हम जैसा।
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सर्द रातों की तन्हाई में
दिल अपना कुछ यूँ बहलाते हैं,
कुछ उनका लिखा दोहराते है
कुछ अपना लिखा मिटाते है ।
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हमें पता है कि तुम
कहीं और के मुसाफिर हो,
हमारा शहर तो बस.....
यूँ ही रास्ते में आया था।
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सिमटते जा रहे है दिल
और जज्बातों के रिश्ते.....
सौदा करने में जो माहिर है,
बस वही कामयाब है ।
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भरी महफ़िल में दोस्ती का जिक्र हुआ
हमने तो सिर्फ आपकी ओर देखा
और वाह-वाह करने लगे।
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याद है हमको अपने सारे गुनाह
एक तो मोहब्बत कर ली,
दूसरा तुमसे कर ली और
तीसरा बेपनाह कर ली ।
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मैं अपनी मोहब्बत में ना बिलकुल बच्चे जैसा हूँ,
जो मेरा है वो सिर्फ मेरा है
किसी और को देखने भी क्यों दूं।
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तू चहरे की बढ़ती सलवटों की परवाह ना कर,
हम लिखेंगे अपनी शायरी में हमेशा जवां तुझको।
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कुछ तो सोचा होगा
कायनात ने तेरे-मेरे रिश्ते पर,
वरना इतनी बड़ी दुनिया में
तुमसे ही बात क्यों होती ।
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मरने वाले तो एक दिन बिना बताए मर जाते है,
रोज तो वो मरते है जो खुद से ज्यादा......
किसी और को चाहते है ।
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मेरी आँखों ने पकड़ा है,
उन्हें कई बार रंगे हाथ.....
वो इश्क तो करना चाहते है,
मगर घबराते बहुत है।
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दर्द भी वही देते है
जिन्हे हक दिया जाता हो,
वरना गैर तो धक्का लगने पर
भी माफी मांग लिया करते है।
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तुमको नाराज होकर तुझसे ही बात करने का मन,
ये दिल का सिलसिला भी कभी ना समझ पाए।
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वो बड़े ताज्जुब से पूछ बैठे मेरे गम की वजह,
मैं हल्का सा मुस्कुराया तो......
पूछ बैठे मोहब्बत की थी ना ?
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आज भी तेरे सारे इल्जाम
हम अपने पर ले लेते है,
ये कह कर कि वो 'बेवफा'
नही हम ही बदनसीब है।
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महफ़िल में गले मिल के वो धीरे से कह गए,
ये दुनिया की रस्म है.....
इसे मोहब्बत मत समझ लेना ।
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कौन शरमा रहा है आज
यूँ हमें फुर्सत में याद करके,
हिचकियाँ आना तो चाह रही है
पर हिच-किचा रही है ।
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बहुत छुपा कर रखा था
तेरी मोहब्बत का राज सबसे,
तेरी याद आते ही ये अश्क सब बयान कर देते है।
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बदनाम करते है
लोग मुझे जिसके नाम से.......
कसम खुदा की,
जी भर के कभी उसको देखा भी नहीं।
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खामोशियाँ बोल देती है
जिनकी बातें नहीं होती,
इश्क़ वो भी करते है
जिनकी मुलाकातें नहीं होती।
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अगर तुम्हें अपना कहें तो तुम्हें कोई शिकवा तो नहीं,
जमाना पूछता है......
बात तेरा अपना कौन है।
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नहीं भुलाया जाता वो शख़्स
जो एक बार दिल में बस जाए,
मोहब्बत की थी कोई टाइमपास नहीं।
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है उलझन बड़ी अब क्या करे,
किससे नफरत किससे प्यार करे,
हर चेहरे के पीछे कई चेहरे है
किस पे शक और किस पे ऐतबार करे।
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लफ्ज ही होते है इंसान का आईना
शक्ल का क्या है ?
वो तो उम्र और हालात के साथ अक्सर बदल जाती है।
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बड़ी मुश्किल से सिखा है
खुश रहना उसके बगैर,
अब सुना है ये बात भी
उसे परेशान करती है ।
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तेरे रोने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा ऐ दिल,
जिनके चाहने वाले ज्यादा हो.......
वो अक्सर बे-दर्द हुआ करते है ।
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किसी को पानी लाने भेजो तो वो खुद पहले पीता है,
ये जिंदगी है जनाब......
यहाँ हर कोई पहले अपने लिए जीता है।
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उम्र जाया कर दी लोगों ने औरों के वजूद में नुक्स निकालते निकालते,
इतना खुद को तराशा होता तो फरिश्ते बन जाते।
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न मांग कुछ जमाने से
ये देकर फिर सुनाते है,
किया अहसान जो एक बार
वो लाख बार जताते है।
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वो शख्स एक छोटी सी बात पर यूँ रूठ कर चला गया,
जैसे उसे सदियों से किसी बहाने की तलाश थी।
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मेरे ख्यालों के पंख है पांव नही
और मजे की बात देखो.....
मेरे पास जमीन है आसमान नहीं।
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ना जाने मैं बुरा हूँ या मेरा नसीब,
मेरा हर वो शख्स दिल दुखाता है
जिस पर मुझे नाज होता है।
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शिकायत और दुआ में जब एक ही शख़्स हो,
तो समझ लो इश्क करने की अदा आ गई तुम्हें।
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दस्तक और आवाज तो कानों के लिए है
जो रूह को सुनाई दे, उसे खामोशी कहते है।
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हिसाब में तुम शुरू से ही कच्चे थे
मैं लाखों सा सँवरती थी
तुम चिल्लर में तारीफ करते थे ।
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मुझे तू चाहिए
तेरा साथ चाहिए
जिसको थामकर कर मैं
पूरी जिंदगी बिता दूं
वो वाला हाथ चाहिए।
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तेरे छोड़ जाने का गम कुछ इस तरह मनायेंगे,
तुम्हें सामने बिठाएंगे......
और भूल जाएंगे ।
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मुझे ढूंढ लेती है हर रोज एक नए बहाने से,
तेरी याद वाकिफ हो गयी है
मेरे हर ठिकाने से।
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❣❣❣❣▪▪▪गुलजार जी की कवितायें▪▪▪❣❣❣❣
रिश्ते बस रिश्ते होते है------
रिश्ते बस रिश्ते होते है
कुछ एक पल के
कुछ दो पल के
कुछ परों से हल्के होते हैं
बरसों के तले चलते- चलते
भारी-भरकम हो जाते है
कुछ भारी-भरकम बर्फ के- से
बरसों के तले गलते-गलते
हल्के-फुल्के हो जाते हैं
नाम होते है रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाये भी
बस नाम से जीना होता है
बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं।
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नहीं उदास नहीं-------
बस एक चुप -सी लगी है, नहीं उदासी नहीं
कहीं पे साँस रुकी है, नहीं उदासी नहीं
कोई अनोखी नहीं ऐसी जिंदगी लेकिन
मिली जो, खूब मिली है, नहीं उदासी नहीं
सहर भी, रात भी, दोपहर भी मिली लेकिन
हमीं ने शाम चुनी है, नहीं उदासी नहीं
बस एक चुप- सी लगी है, नहीं उदासी नहीं
कहीं पे साँस रुकी है, नहीं उदासी नहीं।
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मुझसे एक कविता का वादा है------
मौत तू एक कविता है
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नब्जों में जब दर्द को नींद आने लगे
जर्द सा चेहरा लिये जब चाँद उफक तक पँहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन
जिस्म जब खत्म हो और रूह को जब साँस आए
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ।
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रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है-------
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है
रात खामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं
कांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है
खाली - खाली कोई बाजरा सा बहा जाता है
चाँद की किरणों में वो रोज सा रेशम भी नहीं
चाँद की चिकनी डाली है कि घुली जाती है
और सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है
काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी
हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है ।
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वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा-------
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा
न उतरते हुए देखा कभी इलहाम की सूरत
जमा होते हुए एक जगह मगर देखा है
शायद आया था वो ख्वाब से दबे पांव ही
और जब आया ख्यालों को एहसास न था
आँख का रंग तुलु होते हुए देखा जिस दिन
मैंने चूमा था मगर वक़्त को पहचाना न था
चंद तुतलाते हुए बोलों में आहट सुनी
दूध का दांत गिरा था तो भी वहां देखा
बोस्की बेटी मेरी, चिकनी - सी रेशम की डली
लिपटी लिपटाई हुई रेशम के तागों में पड़ी थी
मुझे एहसास ही नहीं था कि वहां वक़्त पड़ा है
पालना खोल के जब मैंने उतारा था उसे बिस्तर पर
लोरी के बोलों से एक बार छुआ था उसको
बढ़ते नाखूनों में हर बार तराशा भी था
चूड़ियाँ चढ़ती - उतरती थी कलाई पे मुसलसल
और हाथों से उतरती कभी चढ़ती थी किताबें
मुझको मालूम नहीं था कि वहां वक़्त लिखा है
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा
जमा होते हुए देखा मगर उसको मैंने
इस बरस बोस्की अठारह बरस की होगी।
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अभी न पर्दा गिराओं-------
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे है
अभी तो किरदार ही बुझे है
अभी सुलगते हैं रूह के गम, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर,
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशन को लेकर,
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे,
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
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शाम से आँख में नमी सी है-------
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं थमकर
इस की आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है
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किताबें झाँकती हैं------
किताबें झाँकती है बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती है
महीनों अब मुलाकातें नहीं होती
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थी
अब अक्सर गुज़र जाती है कंप्यूटर के परदे पर
बड़ी बैचेन रहती है किताबें
उन्हें अब नींद मे चलने की आदत हो गई है
जो ग़जले वो सुनाती थी कि जिनके शल कभी गिरते नहीं थे
जो रिश्तें वो सुनाती थी वो सारे उघड़े-उघड़े है
कोई सफ़्हा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ्जों के मानी गिर पड़े है
बिना पत्तों के सूखे टूंड लगते है वो सब अल्फ़ाज़
जिन पर अब कोई मानी उगते नही है
जबाँ पर जायका आता था सफ़्हे पलटने का
अब उँगली क्लिक करने से बस एक झपकी गुजरती है
बहोत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो जाती राब्ता था वो कट-सा गया है
कभी सीनें पर रखकर लेट जाते थे
कभी गोदी मे लेते थे
कभी घुटनों को अपने रहल की सूरत बनाकर
नीम सज़दे में पढ़ा करते थे
छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
मगर वो जो उन किताबों में मिला करते थे
सूखे फूल और महके हुए रुक्के
किताबें माँगने, गिरने, उठाने के बहाने जो रिश्ते बनते थे
अब उनका क्या होगा......!!
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माँ उपले थापा करती थी-------
छोटे थे, माँ उपले थापा करती थी
हम उपलों पर शक्लें गूँथा करते थे
आँख लगाकर - कान बनाकर
नाक सजाकर -
पगड़ी वाला, टोपी वाला
मेरा उपला -
तेरा उपला -
अपने-अपने जाने-पहचाने नामों से
उपले थापा करते थे
हँसता-खेलता सूरज रोज़ सवेरे आकर
गोबर के उपलों पे खेला करता था
रात को आँगन में जब चूल्हा जलता था
हम सारे चूल्हा घेर के बैठे रहते थे
किस उपले की बारी आयी
किसका उपला राख हुआ
वो पंडित था -
इक मुन्ना था -
इक दशरथ था -
बरसों बाद - मैं
शमशान में बैठा सोच रहा हूँ
आज की रात इस वक़्त के जलते चूल्हे में
इक दोस्त का उपला और आ गया!
❣▪▪💠💠💠💠💠▪▪❣
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर------
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाजी देखी मैंने,
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाजी देखी मैंने
काले घर में सूरज चलके, तुमने शायद सोचा था
मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे,
मैंने एक चराग जलाकर रोशनी कर ली,
अपना रास्ता खोल लिया
तुमने एक समन्दर हाथ में लेकर मुझपे ढेल दिया,
मैने नोह की कश्ती उस के उपर रख दी
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा,
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा
मैंने काल को तोड़कर,
लम्हा लम्हा जीना सीख लिया
मेरी खुदी को मारना चाहा
तुमने चंद चमत्कारों से
मेरी खुदी को मारना चाहा तुमने
चन्द चमत्कारों से
और मेरे एक प्यादे ने चलते चलते
तेरा चाँद का मोहरा मार लिया
मौत की शह देकर तुमने समझा था अब तो मौत हुई
मौत की शह देकर तुमने समझा था अब तो मौत हुई
मैंने जिस्म का खोल उतारकर सौंप दिया,
और रूह बचा ली
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब
तुम देखो बाजी.....
❣▪▪💠💠💠💠💠▪▪❣
बस एक लम्हें का झगड़ा था-------
बस एक लम्हें का झगड़ा था
दर-ओ- दीवार पे ऐसे छनाके से गिरी आवाज़
जैसे काँच गिरता है
हर एक शय में गई
उड़ती हुई, चलती हुई, किरचें
नजर में, बात में, लहजे में,
सोच और साँस के अंदर
लहू होना था इक रिश्ते का
सो वो हो गया उस दिन
उसी आवाज के टुकड़े उठा के फर्श से उस शब
किसी ने काट ली नब्जें
न की आवाज तक कुछ भी
कि कोई जाग न जाए
बस एक लम्हें का झगड़ा था
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मेरे रौशनदार बैठा एक कबूतर------
मेरे रौशनदार में बैठा एक कबूतर
जब अपनी मादा से गुटरगुं कहता है
लगता है मेरे बारे में, उसने कोई बात कही ।
शायद मेरा यूँ कमरे में आना और मुखल होना
उनको नावाजिब लगता है ।
उनका घर है रौशनदार में
और मैं एक पड़ोसी हूँ
उनके सामने एक वसी आकाश का आंगन
हम दरवाजे भेड़ के, इन दरबों में बंद हो जाते है
उनके पर है, और परवाज़ ही खसलत है
आठवीं, दसवीं मंजिल के छज्जो पर वो
बेखौफ टहलते रहते हैं
हम भारी - भरकम, एक कदम आगे रक्खा
और नीचे गिर के फौत हुए।
बोले गुटरगु.....
कितना वजन लेकर चलते हैं ये इंसान
कौन सी शै है इसके पास जो इतराता है
ये भी नहीं कि दो गज की परवाज़ करें।
आँखे बंद करता हूँ तो माथे के रौशनदार से अक्सर
मुझको गुटरगुं की आवाजे आती है ।
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कदम उसी मोड़ पे जमे है------
कदम उसी मोड़ पे जमे है
नजर समेंटे हुए खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
खुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे अहसास कह रहा है
खुद दरीचे के पीछे दो आँखे झाँकती है
अभी मेरे इंतजार मे वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये जिद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
कदम उसी मोड़ पर जमे है
नजर समेटे हुए खड़ा हूँ
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वो जो शायर था-------
वो जो शायर था चुप-सा रहता था
बहकी - बहकी सी बातें करता था
आँखे कानों पे रख के सुनता था
गूँगी खामोशियों की आवाजें!
जमा करता था चाँद के साए
और गीली-सी नूर की बूँदे
रूखे-रखे -से रात के पत्ते
ओक में भर के खरखराता था
वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे-पक्के से लम्हें चुनता था
हाँ वही, वो अजीब सा शायर
रात को उठ के कोहनीयों के बल
चाँद की ठोड़ी चूमा करता था
चाँद से गिर के मर गया है वो
लोग कहते है खुदकुशी की है।
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बारिश आने से पहले-----
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है
सारी दरारें बंद कर ली है
और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है
खिड़की जो खुलती है बाहर
उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच दिया है
मेन सड़क से गली में होकर, दरवाजे तक आता रास्ता
बजरी-मिट्टी डाल के उसको कूट रहे है!
यहीं कहीं कुछ गड़हों में
बारिश आती है तो पानी भर जाता है
जूते पाँव, पाँएचे सब सन जाते है
गले न पड़ जाए सतरंगी
भींग न जाएँ बादल से
सावन से बचकर जीते है
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है!!
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सपना रे सपना------
सपना रे सपना, है कोई अपना
अँखियों मे आ भर जा
अंखियों की डिबिया, भर दे रे निंदिया
जादू से जादू कर जा
सपना रे सपना, है कोई अपना
अंखियों में आ भर जा ना
सपना रे सपना, है कोई अपना
अंखियो में आ भर जा ना
भूरे भूरे बादलों के भालू
लोरियां सुनाये लारा रा रु
तारों के कंचों से रात भर खेलेंगे
सपनों मे चंदा और तू
सपना रे सपना, है कोई अपना
अंखियो में आ भर जा ना
पीले पीले केसरी है गाँव
गीली गीली चाँदनी की छाँव
बगुलों के जैसे रे डूबे हुए हैं रे
पानी में सपनों के पाँव
सपना रे सपना, है कोई अपना
अंखियो में आ भर जा ना
अंखियों की डिबिया, भर दे रे निंदिया
जादू से जादू कर जा
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खाली कागज पे क्या तलाश करते हो? ----
खाली कागज पे क्या तलाश करते हो?
एक खामोश-सा जवाब तो है
डाक से आया है तो कुछ कहा होगा
"कोई वादा नहीं....लेकिन
देखें कल वक़्त क्या तहरीर करता है"
या कहा हो कि.... "खाली हो चुकी हूँ मैं
अब तुम्हे देने को बचा क्या है?"
सामने रख के देखते हो जब
सर पे लहराता शाख का साया
हाथ हिलाता है जाने क्यों?
कह रहा हो शायद वो.....
"धूप से उठके दूर छाँव में बैठो!"
सामने रौशनी के रख के देखो तो
सूखे पानी की कुछ लकीरें बहती है
" इक जमीं दोज़ दरया, याद हो शायद
शहरे मोहनजोदरो से गुजरता था!"
उसने भी वक़्त के हवाले से
उसमें कोई इशारा रखा हो....या
उसने शायद तुम्हारा खत पाकर
सिर्फ इतना कहा कि, लाजवाब हूँ मैं!
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आहिस्ता चलो-------
देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता जरा देखना,
सोच - सँभल कर जरा पाँव रखना,
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं,
काँच के ख्वाब है बिखरे हुए तन्हाई में,
ख्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो,
जाग जायेगा कोई ख्वाब तो मर जाएगा ।
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सहल साफ है यह रास्ता-------
किस कदर सीधा सहल साफ है यह रास्ता देखो
न किसी शाख का साया है, न दीवार की टेक
न किसी आँख की आहट, न किसी चेहरे का शोर
न कोई दाग जहाँ बैठ के सुस्ताए कोई
दूर तक कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं
चन्द कदमों के निशाँ, हाँ, कभी मिलते है कहीं
साथ चलते है जो कुछ दूर फकत चन्द कदम
और फिर टूट के गिरते है यह कहते हुए
अपनी तन्हाई लिये आप चलो, तन्हा,
अकेले साथ जो यहाँ, कोई नहीं, कोई नहीं
किस कदर सीधा, सहल साफ है यह रास्ता
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आम-----
मोड़ पे देखा है वो बूढ़ा-सा इक आम का पेड़ कभी ?
मेरा वाक़िफ है बहुत सालों से, मैं जानता हूँ
जब मैं छोटा था तो इक आम चुराने के लिए
परली दीवार से कंधो पे चढ़ा था उसके
जाने दुखती हुई किस शाख से मेरा पाँव लगा
धाड़ से फेंक दिया था मुझे नीचे उसने
मैंने खुन्नस में बहुत फेंके थे पत्थर उस पर
मेरी शादी पे मुझे याद है शाखें देकर
मेरी वेदी का हवन गरम किया था उसने
और जब हामला थी बीबा, तो दोपहर में हर दिन
मेरी बीवी की तरफ कैरियाँ फेंकी थी उसी ने
वक़्त के साथ सभी फूल, सभी पत्ते गए
तब भी लजाता था जब मुन्ने से कहती बीबा
'हाँ उसी पेड़ से आया है तू, पेड़ का फल है। '
अब भी लजाता हूँ, जब मोड़ से गुजरता हूँ
खाँस कर कहता है, "क्यूँ, सर के सभी बाल गए? "
सुबह से काट रहे है वो कमेटी वाले
मोड़ तक जाने की हिम्मत नहीं होती मुझको!
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इक जरा छींक ही दो तुम-----
चिपचिपे दूध से नहलाते है, आंगन में खड़ा कर के तुम्हें
शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
घोल के सर पे लुढ़काते हैं गिलासियाँ भर के
औरतें गाती है जब तीव्र सुरों में मिल कर
पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो
इक पथराई सी मुस्कान लिए
बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी
जब धुआँ देता, लगातार पुजारी
घी जलाता है कई तरह के छींके देकर
इक जरा छींक ही दो तुम
तो यकीं आए कि सब देख रहे हो
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बदलने वाला है मौसम------
हमें पेड़ों की पोशाकों से इतनी सी खबर तो मिल ही जाती है
बदलने वाला है मौसम.....
नये आवेजे कानों में लतकते देख कर कोयल खबर देती है
बारी आम की आई ....!
कि बस अब मौसम -ऐ - गर्मा शुरू होगा
सभी पत्ते गिरा के गुल मोहर जब नंगा हो जाता है गर्मी में
तो जर्द-ओ-सुर्ख, सब्जें पर छपी, पोशाक की तैयारी करता है
पता चलता है कि बादल की आमद है!
पहाड़ों से पिघलती बर्फ बहती है धुलाने पैर 'पाइन' के
हवाएँ झाड़ के पत्ते उन्हें चमकाने लगती हैं
मगर जब रेंगने लगती है इंसानो की बस्ती
हरी पगडन्डीयों के पाँव जब बाहर निकलते है
समझ जाते है सारे पेड़, अब कटने की बारी आ रही है
यही बस आख़िरी मौसम है जीने का, इसे जी लो!
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