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शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

Hasya Kavita in hindi | Hasya Kavita- हास्य कविताएं

Hasya Kavita in hindi | Hasya Kavita- हास्य कविताएं | रंगारंग हास्य कवि सम्मलेन हिंदी में 

मोहल्लों से लेकर विदेशों तक शोर मचाने वाले सुविख्यात ,ज्ञात /अज्ञात हास्य कवियों से कीजिये मुलाकात।  आइये दोस्तों हास्य कविता के इस हास्य महासागर में गोते लगाइए हंसिये ,हंसाइए। गुद गुदाइये /ठहाके लगाइए

 

दया---अशोक चक्रधर

भूख में होती है कितनी लाचारी
ये दिखाने के लिए एक भिखारी
लॉन की घास खाने लगा,
घर की मालकिन में
दया जगाने लगा।
दया सचमुच जागी
मालकिन आई भागी-भागी -
'क्या करते हो भैया ?'
भिखारी बोला -
'भूख लगी है मैय्या !
अपने आपको
मरने से बचा रहा हूँ
इसलिए घास ही चबा रहा हूँ।'
मालकिन ने आवाज में मिश्री -सी घोली
और ममतामयी स्वर में बोली-
'कुछ भी हो भैया
ये घास मत खाओ
मेरे साथ अंदर आओ !
दमदमाता ड्राइंगरूम
जगमगाती लाबी
ऐशोआराम के सारे ठाठ नवाबी।
फलों से लदी हुई
खाने की मेज
और किचिन से आई जब
महक बड़ी तेज
तो भूख बजाने लगी
पेट में नगाड़े
लेकिन मालकिन ले आई उसे
घर के पिछवाड़े।
भिखारी भौंचक्का - सा देखता रहा
मालकिन ने और ज्यादा प्यार से कहा -
'' नर्म है,मुलायम है,कच्ची है
इसे खाओ भैया
बाहर की घास से ये घास अच्छी है।''
           ★★★★★★


इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं --- ओम प्रकाश आदित्य

इधर भी गधे हैं,उधर भी गधे हैं।
जिधर देखता हूँ गधे ही गधे है।।
गधे हंस रहे आदमी रो रहा है।
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है।।
जवानी का आलम गधों के लिए है।
ये रसिया ये बालम गधों के लिए है।।
ये संसार सालम गधों के लिए है।
ये दिल्ली ये पालम गधों के लिए है।।
पिलाये जा साकी पिलाये जा डट के।
तू विहस्की के मटके पै मटके।।
मैं दुनिया को अब भूलना चाहता हूं।
गधों की तरह झूमना चाहता हूं।।
घोड़ों को मिलती नहीं घास देखो।
गधे खा रहे च्यवनप्राश देखो।।
यहां आदमी की कहां कब बनी है।
ये दुनिया गधों के लिए ही बनी है।।
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है।
जो कोठे पे बोले सच्चा गधा है।।
जो खेतो में दिखे वो फसली गधा हैं।
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है।।
मैं क्या बक रहा हूं,ये क्या कह गया हूं।
नशे की पिनक में कहां बह गया हूं।।
मुझे माफ़ करना मैं भटका हुआ था।
ये ठर्रा था,भीतर जो अटका हुआ था।।

           ★★★★★★


बापू तेरे देश में---चक्रधर शुल्क

बापू तेरे देश की
जनता हाल-बेहाल है
नेताओं की पूछ मत
इनमें कौन दलाल है ?
अफसर से चपरासी तक
हंसी, खुशी, उदासी तक
टीचर से फटीचर तक
सोमवार, शनीचर तक
सब पर भूत सवार है
लॉटरी की बहार है
वर्तमान फटेहाल है !
फेयरग्रोथ कमाल है !!
बापू तेरे देश की
जनता हाल- बेहाल है !!!
शेयर-कांड उछाला है
घोटाले पे घोटाला है
चौटाला अब शांत है
पर माधव अशांत है
बड़ो- बड़ों की छुट्टी है
मनमोहन की चुप्पी है
उठता रोज सवाल है !
पर 'वो' मालामाल है !!
बापू तेरे देश की
जनता हाल -बेहाल है !!!
साक्षरता जारी है
पत्राचार भारी है
एक पदक न पाया है
फिर भी नाज उठाया है
किए जुर्म संगीन है
पद पर वो आसीन हैं
काम बड़े सरकारी है
दिल के दौरे जारी है
पाचन-शक्ति महान है
मंत्री ही भगवान् है
दंगा और बवाल है !
कंगला औ' कंगाल है!!
बापू तेरे देश की
जनता हाल-बेहाल है !!!
बढ़ता प्रतिदिन शोर है
बलात्कार का जोर है
जहरीली हो गई हवा
खाकर मरते लोग दवा
संत हो गए व्यभिचारी
रक्षक हैं अत्याचारी
चीर-हरण अब आम है
गली-गली  बदनाम है
खादी-कुर्ता ढाल है !
कुर्सी पर भूचाल है !!
बापू तेरे देश की
जनता हाल-बेहाल है !!!
रोज गरीबी पूछ रही
सबसे वही सवाल है !
आश्वासन का जाल है !!
बापू तेरे देश की
जनता हाल - बेहाल है
     ★★★★★★


कचहरी---कैलाश गौतम

भले डांट घर में तू बीबी की खाना
भले जैसे- तैसे गिरस्ती चलाना
भले जाके जंगल में धूनी रमाना
मगर मेरे बेटे ! कचहरी न जाना

कचहरी हमारी - तुम्हारी नहीं है
कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं है
अहमद से मेरी भी यारी नहीं है
तिवारी था पहले,तिवारी नहीं है
कचहरी की महिमा निराली है बेटे
कचहरी वकीलों की थाली है बेटे
पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे
यहां पैरवी अब दलाली है बेटे

कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही जिंदगी उनको देती है बेटे
खुलेआम कातिल यहां घूमते हैं
सिपाही दरोगा कदम चूमते है
कचहरी में सच की बड़ी दुर्दशा है
भला आदमी किस तरह से फंसा है
यहां झूठ की ही कमाई है बेटे
यहां झूठ की रेट हाई है बेटे

कचहरी का मारा, कचहरी में भागे
कचहरी में सोये, कचहरी में जागे
मरा, जी रहा है गवाही में जैसे
है तांबे का हंडा सुराही में जैसे
लगाते-बुझाते-सिखाते मिलेंगे
हथेली में सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहां से खुलेगा बटन देखती है

कचहरी शरीफों की खातिर नहीं है
उसी की कसम लो जो हाजिर नहीं है
है बासी मुंह घर से बुलाती कचहरी
बुलाकर के दिनभर रुलाती कचहरी
मुक़दमे की फ़ाइल दबाती कचहरी
हमेशा नया गुल खिलाती कचहरी

कचहरी का पानी जहर से भरा है
कचहरी के नल पर मुवक्किल मरा है
कचहरी का पानी, कचहरी का दाना
तुम्हें लग न जाए तू बचना-बचाना
भले और कोई मुसीबत बुलाना
कचहरी की नौबत कभी घर न लाना

कभी भूलकर भी न आँखे उठाना
न आँखे उठाना न गर्दन फ़साना
जहां पांडवों को नरक है कचहरी
वहीँ कौरवों का सरग है कचहरी

           ★★★★★★


सड़क की राजनीती या राजनीति की सड़क----प्रभा किरण जैन

शहर की
लड़खड़ाती सड़क पर
सोते-पड़ते-लड़खड़ाते
हम
उनके घर पहुंचते ही
धम्म से
सोफे पर जा गिरे
वे बोले 'अरे वाह ,
आते ही लुढ़क गए
क्या इतने थक गए। '
हमने कहा -
'थक नहीं गए ,
यूँ कहिए बच गए
शुक्र है किसी गड्ढे में नहीं गिरे
हमें सड़क की रोड़ियों ने सरकाया
सड़क की खाई में गिरते
हमें रोड़ियों ने बचाया। '
वे बोले - 'यह सड़क तो
अभी-अभी सरकार ने बनवाई है '
हमने पूछा -
'सड़क की खाई है ?'
तत्काल वे बोल पड़े,
'इसमें जो खाई है
एक ने नहीं, कितनों ने खाई है
निचे से ऊपर तक
ऊपर से निचे तक
बंटे हुए हिस्से है
सबके अलग-अलग किस्से है
कुछ छिपे है
कुछ स्पष्ट है
पर आपको क्या कष्ट है ?
यह तो अपना पुराना रिवाज है
आजादी के बाद की यही तो आवाज है
आओ,
मिलजुल कर खाओ
मिलजुल कर पचाओ
एकता जरुरी है
इसी में भला है
अपना गणतंत्र ऐसे ही चलेगा
और ऐसे ही चला है
बनकर टूटना,टूटकर बनना
सड़क की गति है
अपनी सरकार की भी
यही स्थिति है
राजीनीति और सड़क
या सड़क की राजनिति
दोनों की एक ही नियति है।
        ★★★★★★

क्या फागुन की ऋतू आई है ?----डण्डा लखनवी

क्या फागुन की ऋतू आई है।
डाली-डाली बौराई है।।
हर ओर सृष्टि मादकता की-
कर रही 'फिरी' सप्लाई है।।
धरती पर नूतन वर्दी है ।
खामोश हो गई सर्दी है।।
कर दिया समर्पण भौरों ने-
कलियों में गुण्डागर्दी है।।
मनहूसी मटियामेट लगे।
खच्चर भी अपटूडेट लगे।।
फागुन में काला कौआ भी-
सीनियर एडवोकेट लगे।।
फागुन पर कुल जग टिका लगे।
सेविका परम-प्रेमिका लगे।।
बागों में बनी-ठनी कोयल-
टी.वी. की उद्द्घोषित लगे।।
जय हो कविता-कालिंदी की।
जय रंग-बिरंगी बिंदी की।।
मेकप में वाह, तितलियां भी-
लगतीं कवियत्री हिंदी की।।
वह साड़ी में थी हरी-हरी।।
रसभरी रसों से भरी-भरी।।
नैनों से डाका गई-
बन्दुक दाग गई धरी-धरी।।
हर और मची हा-हा-हू -हू।
रंगों का भीषण मैच शुरू ।।
साली की बॉलिंग पर सीधे-
जीजा जी है एल. बी. डब्लू।।
भाभी के रन पक्के-पक्के ।
हर ओवर में छः -छः छक्के।।
पर कोई बॉल न कैच हुआ-
सब देवर जी हक्के-बक्के।।
गर्दिश में वही बिचारे है।
बेशक जो बिना सहारे है ।।
मुख उनका ऐसा धुवां-धुवां-
ज्यों अभी एलेक्सन हारे है।।
यह फागुन की अंगड़ाई है।
मक्खी भी बटरफ्लाई है।।
कह रहे गधे भी सुनो-सुनो-
''इंसान हमारा भाई है''

        ★★★★★★

वे और तुम---जैमिनी हरियाणवी

मुहब्बत की रियासत में सियासत जब उभर जाए
प्रिय तुम ही बताओ जिंदगी कैसे सुधर जाए ?
चुनावों में चढ़े है वे, निगाहों में चढ़ी हो तुम
चढ़ाया है जिसे तुमने,कहीं रो-रो न मर जाए?
उधर वे जीतकर लौटें,इधर तुमने विजय पाई
हमेशा हारने वाला जरा बोलों, किधर जाए ?
वहां वे वोट के इच्छुक,यहाँ तुम नोट की कामी
कहीं यह देनदारी ही हमें बदनाम कर जाए ?
पुजारी सीट के वे है,पुजारिन सेज की तुम हो
तुम्हारे को समझने में कहीं जीवन गुजर जाए ?
उधर चमचे खड़े उनके, इधर तुम पर फ़िदा है हम
हमें अब देखना है भाग्य किसका कब संवर जाए ?
वहां वे दल बदलते है, यहाँ तुम दिल बदलती हो
पड़ी है वान दोनों को कि वचनों से मुकर जाए !
उन्हें माइक से मतलब है,तुम्हें भी माइका प्यारा
तुम्हारा क्या बिगड़ता है उठे कोई या गिर जाए ?
तुम्हारा शब्द तो मेरे लिए रोटी का लुकमा है
जरा तकरीर दे डालो की मेरा पेट भर जाए।
            ★★★★★★


 छात्र-वन्दना----जैमिनी हरियाणवी

हे मेरे छात्र, मेरे देवता
आज अपनी दैनिक डायरी भरने को
तुझे क्या और कैसे पढ़ाऊं ?
और तेरा यह मूड ठीक करने को
तुझे किस तरह रिझाऊं ?
कल जब
मैं किसी फ़िल्मी-हीरो की तरह मुस्कुराया था
तुझे बहुत भाया था
और मैंने तेरे कहने पर
एक फ़िल्मी- गीत गाया था
तूने खूब सराहा था
लेकिन आज,
आज मैं बहुत दुखी हूँ मेरे देवता
कैसे मुस्कुराऊं ?
तुझे सुनाने को, मनाने को,रिझाने को
रोज-रोज नए गीत खान से लाऊँ ?
हे मेरे छात्र,
तू ही मेरा गुरु है,मैं तो तेरा चेला हूं
तू चाहता है शार्ट-कट
कैसे ले जाऊं ? मैं तो एक ठेला हूं
तू जो 'अर्थ' की बात करता है
कहां से दूं
मैं तो सिर्फ किताबों के नोटों का थैला हूं
ठहर,मत कस आवाज
मत हो नाराज
अरे नादान!
भूल मत एहसान
उस दिन जब तू सिनेमाघर में था
फिर भी मेरे रजिस्टर में था
ठहर,अपने को संभाल मेरे देवता
आंखे तो मत निकाल मेरे देवता
मैं तो तुझे प्रश्न-पत्र बता दूंगा
आवश्यक अगर पड़ी
तो अंक भी बढ़ा दूंगा
कालिज में
आ तो गया हूं
अब जाने का गम है
घर कैसे पहुंचू?
ये प्रॉब्लम है
क्या होगा इसका हल ?
जिस बस में मुझे जाना था
उसको तो तूने जला दिया था कल।
तो मेरे गुरु
मुझे पैदल ही चला जाने दे
इतना कर दे अहसान
इन्तजार करती होगी
मेरी बीवी-जान।

        ★★★★★★

मांग---डंठल

कल दिल्ली की उपनगरी में
एक हादशा पेश आ गया
जिसे देखकर
मेरे दिल- दिमाग का इंजन
उसी तरह से फेल हो गया
जैसे लोकल कवी आने पर
माइक फेल हुआ करता है।
मैंने देखा -
एक जुलुस बड़ा लम्बा सा
जिसमें केवल महिलायें थीं
महिलाओं में भी सब 'मिस' थी
क्योंकि उनकी
मांगों में सिंदूर नहीं था
सधवा होने की वह
साइनबोर्ड नहीं था
हाथों में पोस्टर लिए थी
जिनमें बड़े-बड़े अक्षर में
लिखा हुआ था-
''मांग हमारी पूरी कर दो ''
तभी अचानक
पुलिस जीप पर
कुछ अधिकारी वहां पधारे
बोले-''मजमा नाजायज है
दफा चवालीस लगी हुई है ''
और भीड़ को
तीतर-बितर करने की खातिर
'तैयार गैस' की 'शैलिंग' कर दी
मैंने सोचा -
ये अधिकारी महा मुर्ख है
बे-अकले है
जलती हुई आग में तिनका डाल रहे है
अश्रु सदा से
नारी का ब्रह्मास्त्र रहा है
और उसी पर
अश्रु-गैस तुम छोड़ रहे हो !
जरा अक्ल का
'स्विच आन' कर
सोचो-है 'डिमांड' कितनी-सी
नहीं लगेगी कानी कौड़ी
थोड़ा-सा सिंदूर मंगा लो
सबकी मांगों में भरवा दो
सबकी मांगे भर जाएगी
मांगे पूरी हो जाएगी।
        ★★★★★★

अनपढ़ नेता और हॉकी मैच ---मूलचंद्र शर्मा 'नादान '

एक अनपढ़ नेता,
जिसे खेलों के बारे में नहीं था ज्ञान।
एक हॉकी मैच में,
बुलवाया गया स-सम्मान।
मैच के बाद आयोजकों ने नेता को,
पुस्तक वितरण के लिए मंच पर बुलवाया।
नेता ने पुरस्कार देने से पहले
खिलाड़ी और दर्शकों से फ़रमाया।
दोनों टीमों ने,
बहुत बढ़िया खेला है ये हॉकी मैच।
एक बात समझ में नहीं आई
पुरे खेल में,
एक भी खिलाड़ी आउट हो जाता।
मैच देखने वालों को भी मजा आता।
एक ही गेंद को,
इधर से उधर धकेलते रहे।
गेंद नहीं थी हमसे कहते हम दिला देते
कम से कम
ग्यारह गेंदों से तो हॉकी मैच खेलते।
एक ही गेंद से सारे खिलाड़ी
पुरे समय हॉकी मैच खेलते रहे।
टी. वी. पर विदेशों में दिखाएंगे।
विदेशी हमारी गरीबी का मजाक उड़ाएंगे।
क्या आप इसे सह पाएंगे ?
राष्ट्रीय एकता के लिए,
दोनों टीमों को नया रास्ता अपनाना होगा।
मेरा यह सुझाव,
आपको अमल में लाना होगा
आपसी सद्भाव के लिए,
आपको यह प्रयास भी इसका एक कारण होगा।
दोनों टीम दोनों तरफ
एक साथ गोल करें
राष्ट्रीय एकता का
यह सबसे बढ़िया उदाहरण होगा।

       ★★★★★★

आप कवि कहलाएंगे----(नवनीत 'हुल्लड़')
 
एक दिन मेरे पिताजी मुझ से बोले-
"बेटे, अब तो तू बड़ा हो गया है
घर के आँगन में
खम्बे की तरह खड़ा हो गया है
कब अपने जीवन को
प्रगति की ओर मोड़ेगा ?
या यूं ही घर बैठकर
मुफ्त की रोटियां तोड़ेगा ?
मैं तो तेरी हालत
देख-देख कर परेशान हूं,
कि तू आगे जाकर क्या बनेगा,
बनेगा भी हमें ही बनाएगा
यही सोच-सोचकर हैरान हूं।''
मैनें कहा -
''पापा, आप फिकर मत कीजिए
मेरा भविष्य है उज्जवल,
और कुछ भी नहीं बन पाया अगर
कवि तो बन ही जाऊंगा
आज नहीं तो कल !''
पापा बोले-
''हम तुझे समझाते हैं
क्या तुझे अपने में
पागलपन के लक्षण नजर आते है ?''
मैं बोला-
''मेरे अकल पत्थर पर
फूल खिल रहे है
और मुझे कवि के सिगनल मिल रहे है।
आज पुरे महीने में पहली बार नहाया हूं,
और किसी को तेरहवीं पर
जन्मदिन की बधाई देकर आया हूं।
चौर्य-विद्या  में भी हो गया हूँ निपुण !''
वह बोले-
''यह है तेरा सबसे बड़ा गुण
यही गुण तो तेरा भविष्य चमकाएगा,
और एक दिन
तुझे महाकवि बनाएगा !
एक बात याद रहे
किसी जीवित कवी की पंक्तियां
चुराने रिस्क मत उठाना
जब भी चुराना किसी स्वर्गीय कवि
की रचना चुराना।
जीवित कवी तो तुझे काट खाएंगे
अब का महाकवि निराला तुझसे पूछने आएंगे ?
अगर तू अपनी कविता को
बनाना चाहता है स्वादिष्ट
तो उसमें अश्लीलता को अवश्य करना प्रविष्ट
तेरी रचना सुनते ही
जनता गोभी के फूल की तरह खिल जाएगी,
और पूरी इमारत तालियों से हिल जाएगी।
जिस दिन तुम में
भारत में भ्रष्टाचार की तरह
यह सारे गुण आ जाएंगे
उसी दिन से महोदय आप कवि कहलाएंगे!''
             ★★★★★★

पहले बीना करवा प्यारे!----(विजय निबार्ध)
 
इस जीवन के अंदर चाहे होना अगर सफल!
लोग पकौड़े तलें तेल में, तू पानी में तल !!
छोड़-छोड़ कर चला गया वह नहाती-धोती रह गई !
क्या सखी साजन ? नहीं बावरी, नगर निगम का नल !!
पीजा ह्या,शर्म को पीजा, घुट कर जफ्फी पाले !
स्कूटर पर बैठ डार्लिंग फिल्म देखने चल !!
पहले राजनीती के अंदर केवल दल होते थे !
लेकिन अब हर दल के अंदर होती है दलदल !!
तुम मेरी आँखों से देखो सारे अंतर मिट गए !
बिल्कुल ओरिजनल जैसी ही लगने लगी नक़ल !!
उठ ! अंधे लोगों के पीछे आँख मूंद कर चल पड़ !
जिसका मोल पड़े मंडी में उस सांचे में ढल !!
किसी वक़्त भी, किसी तरफ से आ सकती है गोली !
पहले बिमा करवा प्यारे पीछे बाहर निकल !!
हमें हमारी चीज सुनाकर वह हमसे ही बोले-
कहिए कैसी लगी आपको मेरी नई ग़ज़ल !!
श्री विजय निबार्ध आपको शायर कौन कहे !
न तो कोई धड़ा आपका, न तिड़कम, न छल !!

              ★★★★★★

जनयुग है, आजादी है----(विजय निर्बाध)

अब किसका विश्वास रहा है मेहनत करके खाने में,
सारी दुनिया लगी हुई है दो के बीस बनाने में !
पहले केवल जेब कटी थी अब कपड़े भी उतर गए,
श्रीमानजी रपट लिखाने चले गए थे थाने में !
बात चली, मंत्रीजी बोले काम तुम्हारा कर देंगे,
लेकिन पहले ये बतलाओ, क्या दोगे नजराने में ?
जो चाहो सो करो प्रेम से जनयुग है, आजादी है,
घर के पहरेदार लगे है, घर के आग लगाने में !
आजादी से पहले बेशक लोग पिकेटिंग करते थे,
मंदिर से दस गुना भीड़ अब रहती है मयखाने में !
सत्य, सादगी, सदाचार की बातें करते रहते हैं,
श्री विजय निर्बाध हो गए पैदा गलत जमाने में !
             ★★★★★★

मुक्केबाजी का स्वर्ण-पदक----(साजन ग्वालियरी)

एक दिन हमने मुंगेरीलाल की
आँखों से देखा एक हसीन सपना
''इस बार विश्व खेलों में
हमारे एक सींकिया पहलवान ने
अपने देश को पहला स्वर्ण-पदक दिला दिया
क्योंकि उसने मुक्केबाजी के
विश्व चैम्पियन को
डेढ़ मिनिट में हरा दिया। ''
यह देखकर विश्व के बड़े-बड़े
पहलवानों के छक्के छूट गए
बेचारों के दिल 'लोकदिल' की तरह टूट गए
अंत में सारे पहलवान पास आए
सबने अपने मस्तक उसके चरणों झुकाए
और उससे बोले-
''हम आज से ही आपके सेवा कर रहे है शुरू
हमने सामूहिक रूप से आपको मान लिया है शुरू
अब हमें भी गुरुमंत्र सीखा दो
मुक्केबाजी के ये खतरनाक दांवपेच
आपने कहां सीखे हैं, इतना बता दो
यह सुनकर उसने अपनी महानता का राज खोला
और सीना फुलाते हुए बोला
हमने तमाम विरोधियों के पावरफुल मुक्के
इन दधीचनुमा हड्डीयों पर
लगातार पांच वर्ष सही है
हम बाकायदा दो साल एम.एल.ए.
और तीन साल एम.पी. रहे है
इस विषय में हमारे अनुभव बहुत तीखे है
मुक्केबाजी के ये भयानक दांवपेच
हमने विधानसभा और संसद में सीखे है। ''

           ★★★★★★

सामयिक वंदना----(अशोक 'आनन')

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
जनता सारी भूखी मरे, मंत्री खाएं मेवा
            कुर्सी के खेल में
            अंधे भए नेता
           वादों की नाव को
           कोई नहीं खेता
      मांझी के तेवर-हुए जानलेवा
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।।
           एक नहीं,दो नहीं
           सब भ्रष्टाचारी
          जुल्म इनके सह रही
             जनता बेचारी
गरीबन के खून से, ये करे कलेवा।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।।
         प्यासन को लोटा देत
          भुखन को थाली
       चमुचन को मौका देत
          औरन को गाली
चुनावन के टाइम पै, करें देश-सेवा।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।।
             ★★★★★★
 
ताई मर गई----(अरुण जैमिनी)
 
वहां तो खूब मिलेगा तर माल
यह सोचकर
पंडित भी चौधरी के साथ चला गया
ससुराल
बताए और पूछे सबके हालचाल
उसके बाद
हलुआ था इतना गरम
कि न निगला जाए, न उगला
आँखों से बहने लगा पानी
पंडित ने पूछा -
''चौधरी साहब क्या हुआ ?''
चौधरी बोला -
''कुछ नहीं,
जब घर  से चला था तो ताई बीमार थी
उसकी याद आ गयी। ''
पंडित ने उसकी ओर से ध्यान हटाया
और हलुवे पे जमाया
तो कमाल हो गया
खाते ही
उसका तो और भी बुरा हाल हो गया
आँखों से बहने लगा टपटप पानी
चौधरी यह देखकर मुस्कुराया
गर्दन हिलाते हुए फ़रमाया-
''क्यों पंडितजी आपके क्या हुआ?''
पंडित बोला - ''चौधरी साहब
हलवे से मेरा पेट तो क्या
आत्मा भी भर गई
मुझे तो लगता है
ताई मर गई। ''

        ★★★★★★
 
खोटा बेटा --- (डॉ. परमेश्वर गोयल )
 
''हुजूर !
आपके क्षेत्र का
भयानक भीमा
यहां रहने
बराबर आता है
और बागी साथियों को
साथ में लाता है। ''
वे बोले-''आने दो,
अपना क्या जाता है
चुनाव में
खोटा पैसा
और खोटा बेटा ही
ज्यादा काम आता है। ''
      ★★★★★★

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